बकरियों की कुछ प्रमुख बीमारियाँ
- पेट के रोग (दस्त)
पेट के रोगो में बकरियों में सबसे महत्वपूर्ण परजिवियो से होने वाले रोग होते हैं. इनका सबसे सामान्य लक्षण दस्त होते हैं जो कभी कभी बिल्कुल पानी जैसे हो जाते है| एक महीने से कम उम्र के बच्चो में दस्त जिस वजह से होते हैं वो है संक्रमण जो एक से दूसरे बच्चो में बहुत तेज़ी से फैलता है. यह ई. कोलाई और सालमोनेला नामक जीवाणुओ से होता हैं| इन दस्तो से सबसे अधिक बच्चे मरते हैं परंतु समय रहते इनका उपचार बहुत कारगर होता है और बच्चे आसानी से बचाए जा सकते हैं| बकरियो की मेंगन की जाँच से पेट में मौजूद कीड़ो का पता लगाया जा सकता है| यह जाँच किसी भी स्थानीय ब्लॉक अस्पताल में मुफ़्त हो जाती है इसके लिए आपको सिर्फ़ बकरी की कुछ ताज़ी मेंगन अस्पताल लेकर जानी होती हैं|
दस्त चाहे किसी भी कारण से हुए हो उनमे मृत्यु अधिकतर पानी की कमी की वजह से होती है. शरीर का पानी और सॉल्ट बहार आ जाते हैं इसलिए बच्चो को और बड़ी बकरियो को नमक चीनी या नमक गुड का घोल दस्तो में अवश्य देते रहें. दस्तो में थोड़ा सफेद या काला सिरका भी दिया जा सकता है. दस्तो से बचाव का एक और तरीका है वो है, माँ का पहला दूध जिसे खीस कहा जाता है. यह पिलाने से दस्त लगना बहुत कम हो जाता है. एक अहम बात यदि बच्चे 2 हफ्ते से छोटे हो तो उन्हे दस्तो में चीनी या गुड के पानी के बजाए ग्लूकोस दें या खाली नमक का पानी दें. चीनी इन बच्चो में दस्तो को और बढ़ा देती है. 3 महीने की उम्र तक एक बार कीड़े मारने की दवाई भी अवश्य पिला दें.
- ET (एंटेरोटॉक्सीमीया)
यह बच्चो की एक घातक बीमारी है जिसमे बच्चे अचानक से मर जाते हैं. इसके मुख्य लक्षण, दस्त और उसके साथ खून का आना, बहुत अधिक पेट में दर्द, ढीला होकर ज़मीन पर लेट जाना, और मौत. जिन्हे ये बीमारी होती है वो बच्चे अक्सर मरे हुए मिलते हैं. इसलिए बचाव किया जाना ज़्यादा अच्छा रहता है. सबसे कारगर तरीका बचाव का टीकाकरण होता है जो 2 से 3 हफ्ते की आयु पर किया जाता है. जिसे 6 हफ्ते बाद फिर दोहराना चाहिए. ग्याबन बकरियो को ये देने से बच्चो में बीमारी आने की संभावना कम हो जाती है यदि बच्चे ऐसी बकरी का खीस पी लेते हैं.
- PPR (बकरियो की महामारी)
यह PPR नामक कीटाणु से होने वाली बकरियो की सबसे घातक बीमारी है जो बकरियो के रेवड़ के रेवड़ साफ कर देती है. यह समूचे भारत में पाई जाती है. इसका कोई इलाज संभव नही है बस टीकाकारण ही इस बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय होता है. यह अमूमन 3 महीने से उपर के बच्चो में दिखाई देती है.
3 से 6 महीने के बच्चे इससे अधिक ग्रसित होते हैं. बाज़ारो में जो बकरे बकरियाँ बिकने जाते हैं यदि वो बिना बिके घर वापस आ जाए तो उनमे भी ये बीमारी आम तौर से देखने को मिल जात है.
इसके प्रमुख लक्षण – सबसे पहले बहुत तेज़ बुखार आता है (1070F) उसके बाद बकरी को दस्त लग जाते हैं फिर बकरी तेज़ी से सांस लेना शुरू करती है और निमोनिया हो जाता है. 6 से 7 दीनो के भीतर बकरी की हालत बहुत नाज़ुक हो जाती है और 50 प्रतिशत से ज़्यादा बकरिया मर जाती हैं.
इस बीमारी से बचाव का तरीका सिर्फ़ टीकाकरण होता है. जिन किसानो के पास 5 से अधिक बकरिया हो उन्हे ख़ासतौर से टीका लगवाना चाहिए क्यूंकी ये बीमारी अधिक बकरियो के झुंड में तेज़ी से फैलती है.
- बकरियो की प्रजनन संबंधित बीमारियाँ
आम तौर पर बकरियो की प्रजनन शक्ति काफ़ी अच्छी होती है पर फिर भी कुछ संक्रामक रोगो की वजह से काफ़ी ग्याबन बकरिया विभिन्न अवस्थाओ में अपना बच्चा फेक देती है. 70 प्रतिशत से अधिक केसो में बच्चा गिरने के मुख्य कारण का पता नही चल पाता. इसका बचाव यह है की बकरियो को अच्छा चारा और दाना दें साथ ही मिनरल मिक्स्चर भी दें जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े. कभी यदि बुखार आए तो खुद दवा ना दें बल्कि डॉक्टर से संपर्क करें.
- लंगड़ापन
लंगड़ापन एक प्रबंधन विफलता का कारण है. इसमे कुछ जीवाणु खराब रख रखवा और स्वच्छता की कमी की वजह से पैरो के बीच की जगह और खुरो को संक्रमित कर देते है है जिससे पैर सूज जाते हैं और चलने में कठिनाई होती है. महीने मे एक बार खुरो को यदि लाल दवाई या नीले थोते के घोल में धो दिया जाए तो इस बीमारी से बचाया जा सकता है. खुरो के बढ़ने की वजह से भी लंगड़ापन आ जाता है.
- थनो की बीमारी (थनेला)
थनो के सूजने की सबसे मुख्य वजह थनेला होती है. ये भी संक्रमण और खराब सॉफ सफाई के कारण होता है. गंदी गीली जगह में बैठना, गंदे हाथो से दूध निकालना और कमज़ोर रोग प्रतिरोधक क्षमता इसके मुख्य कारण होते है. नियमित रूप से मिनरल मिक्स्चर देने से और सॉफ सफाई रखने से थनेला को रोका जा सकता है. सही से इलाज ना होने पर थनो में गाँठे भी पड़ जाती हैं जो कभी सही नही होती इसलिए ये बीमारी होते ही उपचार अवश्य करायें. इसके लक्षण निम्न हैं, थनो का सूजना, गरम होना, फटा हुआ दूध निकलना, थनो से खून का आना और गाँठ का पड़ जाना. अधिक बीमारी में बुखार भी आ जाता है. देसी इलाज के तौर पर लहसुन, आजवायन, तुलसी, कालोंजी और हल्दी मिलकर एक चटनी बना लें और एक एक चम्मच सुबह शाम दें और इसका लेप बना कर थनो पर भी लगाया जा सकता है.
- सांस लेने के तंत्र की बीमारियाँ (निमोनिया)
ये बीमारियाँ बकरियो में काफ़ी सामान्य होती हैं इसके लक्षण जैसे नाक का बहना, आँखो से पानी आना, खाँसी, छींक, सांस का तेज़ होना,गहरी साँसे लेना, और निमोनिया का हो जाना जिसमे बुखार, खाना पीना छोड़ देना, सांस लेने में आवाज़ करना दिखाई देता है.
जब पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और पशु अधिक पशुओ के साथ बाड़े में रहता है तो स्वच्छ हवा की कमी हो जाती है जिससे हानिकारक गैसे सांस की नली में पहुँच कर सांस लेने के तंत्र को घातक नुकसान पहुचती है. खुले हुए बाड़े और स्वच्छ हवा का आवागमन बकरियो के स्वास्थ के लिए ज़रूरी होता है.
- खाल की बीमारिया
संक्रामक रोग, खुजली, जुएँ, किल्लिया, चेचक और बालो का झड़ना. जब बकरी की खाल ज़रूरत ज़्यादा गीली रहती है तो खाल में संक्रामक जीवाणु घर कर जाते हैं और खाल पर सूखे हुए चक्कते पड़ जाते हैं. किल्लियो और पिस्सुओ की वजह से भी ये स्थिति पैदा करती है. कई बार फंगस की वजह से भी खाल खराब हो जाती है. बकरियो या बकरो को बार बार नही नहलाना चाहिए. गॉट पॉक्स जिसे बकरियो की चेचक भी कहते हैं. ये एक घातक बीमारी होती जिसका टीकाकरण मौजूद है.