Milk Fat Depression – Reasons and Solution दूध में फैट क्यों कम हो जाता है और उसे सही कैसे रखा जाये
गाय के दूध में फैट के दो स्रोत होते हैं या तो वो फैट गाय के थनों में बनता है या फिर उसके प्लाज्मा से वो आता है (प्लाज्मा खून का हिस्सा होता), इन दो स्रोतों से जो फैट मिलते हैं वो आपस में काफी अलग होते हैं|
ये फैटी एसिड तीन प्रकार के होते हैं, शॉर्ट चेन, मीडियम चेन और लॉन्ग चेन| थनों के अन्दर शॉर्ट और मीडियम चेन बनते है बाकि लॉन्ग चेन प्लाज्मा से दूध में आते हैं| प्लाज्मा में फैटी एसिड लीवर के द्वारा बनाये जाते हैं या दाने चारे से प्लाज्मा में आते हैं|
एक अहम् बात जो दूध में फैट की मात्रा को निर्धारित करती है वो है पशु के आहार में इफेक्टिव फाइबर की मात्रा|
जब फाइबर को पशु चबाता है है तो उससे पशु के मुह में लार का उत्पादन होता है जो रुमेन में जाकर बफर का काम करती है और रुमेन की पी.एच को गिरने से रोकती है|
इसीलिए चारे की लम्बाई का बहुत महत्त्व होता है और 0.6–0.8 cm तक का कटा हुआ चारा लार का उत्पादन पैदा करने के लिए सबसे बढ़िया होता है|
यदि रुमेन की पी.एच जाने लगे तो वोलेटाइल फैटी एसिड का अनुपात बिगड़ जाता है और एसीटेट की जगह प्रोपियोनेट अधिक बनने लगता है|
पहले ये सोचा जाता था की दूध में जो फैट की कमी आती है वो वोलेटाइल फैटी एसिड में बदलाव की वजह से आती है परन्तु पिछले कई सालों में हुई रिसर्च ने बड़े यकीन से ये साबित किया है की मिल्क फैट डिप्रेशन रुमेन के अन्दर बदले हुई बायो हाइड्रोजिनेशन प्रक्रिया की वजह से होता है न कि बदले हुए वोलेटाइल फैटी एसिड के अनुपात की वजह से|
फैटी एसिड दो तरह के होते हैं एक सैचुरेटेड जो सामान्य कमरे के तापमान पर ठोस रूप में पाए जाते हैं और दूसरे अनसैचुरेटेड जो सामान्य कमरे के तापमान पर तरल रूप में रहते हैं|
रुमेन के बैक्टीरिया पौलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड को हाइड्रोजीनेट करते हैं इसका मतलब यह है की उनके सामान्य स्ट्रक्चर को बदल देते हैं| पौलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड श्रृंखलाए दो तरह की होती है एक तो सीधी जिन्हें ट्रांस कहा जाता है और दूसरी बीच बीच में से मुड़ी हुई होती है जिन्हें सिस कहा जाता है|
ट्रांस अनसैचुरेटेड फैटी एसिड, सैचुरेटेड फैटी एसिड की तरह बर्ताव करते हैं और ये ट्रांस फैटी एसिड सिस के मुकाबले मनुष्यों के पोषण में हानिकारक माना जाता है इसीलिए (आपने चिप्स या और डब्बा बंद खाने के पैकेट्स पर लिखा देखा होगा की ट्रांस फैटी एसिड फ्री फ़ूड)|
कुछ रिसर्चो में ये देखा गया की एक लिनोलेईक एसिड जो की एक तरह का अनसैचुरेटेड फैटी एसिड है उसका ट्रांस 10 आईसोमर पशु के थनों में फैट बनने को कम करता है| जब डाइट में पौलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (यानि तेल) की मात्रा अधिक होती है और रुमेन की पी.एच 6 से कम हो जाती है, तो यह ट्रांस 10 आईसोमर अच्छी मात्रा में बनने लगता है और खून में अवशोषित होकर थनों में फैट बनने से रोकता है और दूध पतला होने लगता है| ऐसे में कई बार बफर को चारे में मिलाने से फैट बढ़ जाता है|
कई बार दूध में फैट की मात्रा को कम रखा जाता है क्यूंकि कम फट वाला दूध मनुष्यों की कुछ बिमारियों में अधिक लाभदायक होता है|
परिक्षण के दौरान पशु के अबोमेसम में जब कन्जूगेटेड लिनोलेईक फैटी एसिड डाला गया तो यह देखा गया की दूध में फैट की मात्रा 55% तक कम हो गयी जबकि कन्जूगेटेड लिनोलेईक फैटी एसिड की मात्रा बढ़ गयी जबकि दूध या प्रोटीन की मात्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ा|
बौमन द्वारा की गयी रिसर्च में यह पता चला कि कन्जूगेटेड लिनोलेईक फैटी एसिड एक विशेष ट्रांस 10 और सिस 12 आईसोमर, बेहद कम डोज़ में (3.5 ग्राम प्रति दिन) दूध में फैट को 25% कम कर देती है| परन्तु कन्जूगेटेड लिनोलेईक फैटी एसिड डिज़ाइनर दूध उत्पादन में उपयोग होता है मानव स्वास्थ के लिए बहुत लाभदायक माना गया है, यह कैंसर और डायबिटीज रोधी होता है और दिल के मरीज़ों के लिए भी स्वास्थवर्धक होता है|
चारे में फाइबर की लम्बाई का दूध में फैट बना कर रखने के लिए बहुत महत्त्व होता है इसी को इफेक्टिव न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर (eNDF), कहते हैं| इसका मतलब यह होता है की पशु को न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर (NDF) की आवश्यकता होती है जो उसे रफेज यानि हरे चारे, साइलेज और भूसे आदि से मिलता है जब पशु को कंसन्ट्रेट फीड खिलाया जाता है तो रफेज की मात्रा कम हो जाती है उससे NDF भी कम होता है, तो दूध में फैट को गिरने से रोकने के लिए फीड में NDF को बनाये रखा जाता है या थोड़ा फैट डाइट में मिलाया जाता है| उद्धरण के तौर पर कॉटन सीड (बिनोले) से दूध में फैट बढ़ाया जाता है इसकी दोनों वजहे होती है एक तो उसमे फैट होता है दूसरा उसमे फाइबर भी रहता है|
Effective neutral detergent fibre (eNDF) की तरह एक physically effective NDF (PEF) भी होता है, यह NDF का वो हिस्सा होता है जो पशु के मुह में लार के उत्पादन को बढ़ाता है| इसीलिए लम्बी घांस का PEF 1 माना जाता है, दूसरे चारों की वैल्यू इससे कम होती है| PEF को नापने का तरीका ये होता है की चारे को एक विशेष छलनी में छाना जाता है, चारे का जो हिस्सा साइज़ में 1.18 mm या इससे अधिक होता है वो छलनी के ऊपर रह जाता है उसे ही PEF कहते हैं|
नेशनल रिसर्च काउंसिल का कहना है की पशु की डाइट के दो भाग होते हैं एक चारा और दूसरा कंसन्ट्रेट फीड, डाइट में टोटल NDF 45 से 76 % तक होता है जबकि इसका 25 से 33% भाग हरे चारे से मिलता है| जैसे जैसे अधिक उत्पादन वाले पशुओं की फीड ग्रहण करने की क्षमता बढती है वैसे वैसे eNDF को बनाये रखना आवश्यक हो जाता है |
The fatty acids of bovine milk fat arise from two sources: from de novo synthesis in the mammary gland and from the plasma lipids. The types of fatty acids from these two sources are very different (Figure 2). The fatty acids synthesized de novo are of short- to medium-chain length, from 4:0 to 14:0, and also some 16:0. In contrast, the C18 fatty acids and some 16:0 arise from the plasma lipids.
A major factor affecting milk fat content is the level of effective fibre in the diet. The act of chewing fibre stimulates saliva production, which acts as a buffer in the rumen, preventing decline in rumen pH.
The recommended minimum particle length for forages is 0.6–0.8 cm in order to stimulate saliva production. If rumen pH is depressed, there is a change in the volatile fatty acid (VFA) ratio, increasing the proportion of propionate to acetate.
Previously it was thought that milk fat depression was due to this change in VFA proportions. Research in the past 10 years strongly suggests that milk fat depression is also the result of changes in the rumen bio-hydrogenation process and not just changes in rumen VFA patterns.
Bacteria in the rumen hydrogenate polyunsaturated fatty acids in the diet. Fatty acid chains of mono- or poly-unsaturated fatty acids can be straight (trans) or bent (cis).
Trans unsaturated fatty acids behave more like saturated fatty acids than unsaturated fatty acids, and are considered to be less desirable in the human diet than cis unsaturated fatty acids. Reduced fat synthesis in the mammary gland has been related specifically to the trans-10 isomer of linoleic acid (Griinari et al. 1998). This is produced when there are sufficient polyunsaturated fatty acids in the diet and when rumen pH falls below 6.0. Under these conditions, addition of buffers to the diet will increase rumen pH and increase milk fat content.
Reduction of milk fat content may be desirable for human dietary reasons, as well as to reduce the energy cost of milk synthesis. Abomasal infusions of conjugated linoleic acids reduced milk fat content by 52–55%, and increased the milk fat content of conjugated linoleic acids, with no effect on milk yield or protein content. The specific isomer trans-10, cis-12 conjugated linoleic acid is a very potent inhibitor of milk synthesis with a dose of 3.5 g/day eliciting a 25% reduction in milk fat yield (Bauman et al. 2001). Conjugated linoleic acids in milk have positive effects on human health and disease prevention including suppression of carcinogenesis and reduction in atherogenesis and diabetes.
A measure of effective fibre, which is specifically related to maintenance of milk fat concentration, is effective neutral detergent fibre (eNDF), which is defined as the sum total ability of the NDF in a feed to replace the NDF in forage or roughage in a diet so that the percentage of milk fat is maintained. This ability may be attributed to the fibre fraction of a feed, or the oil fraction. For example, the effect of feeding whole cottonseed on milk fat percentage may be a result of both its fibre and fat contribution to the diet
Another measure of effective fibre is physically effective NDF (PEF) that is the portion of NDF which is effective in stimulating salivation. Thus the PEF of long grass hay is set to 1, with other forages having lower values. PEF could be estimated by the proportion of NDF retained on a screen with 1.18 mm or greater openings after dry sieving. PEF could be estimated from particle size distributions in a three-screen sieve (>19 mm, 8 to 19 mm, and <8mm).
NRC concluded that more research is needed to identify other chemical and physical characteristics of feeds that influence their ability to maintain optimal ruminal function before specific values for effectiveness of various forage and non-forage fibre sources can be determined. Because of these problems, NRC chose not to recommend dietary levels of effective fibre.
NRC (2001) recommendations for minimum total NDF varies from 25 to 33% as the forage component of NDF in the diet varies from 76 to 45%. This recommendation applies to lucerne or maize silage diets. With grazed temperate pastures in a vegetative state, the fibre is likely to be less effective at stimulating chewing, so the minimum desirable NDF is 35 to 40% when the forage component of NDF is about 75%. As level of intake increased, an increasing proportion of fibre was required to maintain a constant milk fat content.