पशु के गले में सूजन और हांफ रहा है तो हो सकता है नुकसान – वक्त रहते यदि मिल जाये इलाज तो बच सकती है जान
भैंसों की जानलेवा बिमारी
हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया (Haemorrhagic Septicaemia) – यह पशुओं में होने वाली एक बहुत घातक बीमारी है जो पाश्चरेला मल्टोसिडा (Pasteurella multocida) नामक बैक्टीरिया से होती है| इसमें पशु काफी बीमार हो जाता है और मृत्यु दर भी अधिक रहती है, इसमें तेज बुखार, जबड़े के और गले के नीचे सूजन और सांस लेने में तकलीफ मुख्य लक्षण होते हैं| यह बीमारी दक्षिणी एशिया, दक्षिणी यूरोप, रशिया और पूर्वी अफ्रीका में देखने को मिलती है| यदि पशुओं के हिसाब से इस बीमारी की तीव्रता को देखा जाए तो भैंसों में सबसे अधिक उसके बाद गाय में फिर सूअरों में इसके लक्षण और इसकी इससे होने वाले नुकसान सबसे अधिक देखे जाते हैं|
भारत में यह बीमारी गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटका, मणिपुर, मेघालय, राजस्थान, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और चंडीगढ़ आदि में देखने को मिलती है और यह क्षेत्र हाई रिस्क क्षेत्र कहलाते हैं| जबकि आंध्र प्रदेश, आसाम, महाराष्ट्र, नागालैंड और सिक्किम मध्यम रिस्क क्षेत्र कहलाते हैं| अंडमान, लक्ष्यदीप, मिजोरम यह प्रदेश हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया बीमारी से रहित घोषित किए गए हैं| इसके सबसे ज्यादा केस बरसात के मौसम में देखने को मिलते हैं हालांकि यह बीमारी होने के लिए कोई क्लियर कट सीजन नहीं होता किसी भी आयु का पशु और किसी भी ब्रीड के पशु इस बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं| इसकी वजह यह होती है की पाश्चरेला बैक्टीरिया आमतौर से पशु के शरीर में रहता है परंतु जब पशु किसी तनाव में आता है तो उसका रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर पड़ जाता है जिसकी वजह से इस बैक्टीरिया को पनपने का अवसर मिल जाता है जैसे मौसम में अचानक से हुए बदलाव अचानक से बारिश का आ जाना या मानसूनी बारिश, पशुओं का अधिक दूरी में ट्रांसपोर्ट करना, उन्हें ठीक से चारा दाना ना दिया जाना, पशुओं से अत्याधिक काम लेना, पेट में अथवा खाल के ऊपर परजीवीयों की उपस्थिति हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया के चांस बहुत बढ़ा देती है|
पाश्चरेला मल्टोसिडा बैक्टीरिया टॉन्सिल और नसोफैरिंक्स में आमतौर से पाया जाता है और यह एक पशु से दूसरे पशुओं में संक्रमित फीड और पानी के सेवन से पहुंच जाता है
इस बीमारी की आउटब्रेक मानसून की बारिशों के शुरू होने के तुरंत बाद देखने को मिल जाते हैं और बीमार हुए पशु दूसरे पशुओं के लिए एक संक्रमण का स्रोत बन जाते हैं यह बैक्टीरिया जब पशु के अंदर जाता है तो उसके खून में पहुंचने की कोशिश करता है जब यह खून में पहुंच जाता है तो वहां सेप्टीसीमिया करता है जिसका अर्थ यह है कि यह खून में जाकर अपनी संख्या को बढ़ाता है और खून के माध्यम से सेप्टिक विभिन्न अंगों में पहुंच जाता है| आखिर में यह फेफड़ों में पहुंचता है और वहां इन्फ्लेमेशन करता है जिससे फेफड़ों के अंदर पानी भरने लगता है और फाइबर इन जमा हो जाता है|
बढ़ते हुए बैक्टीरिया कुछ जहरीले पदार्थ भी छोड़ते हैं जिन्हें टॉक्सिन कहा जाता है| इस बीमारी में तेज बुखार मुंह से झाग आना और कंपन देखने को मिलता है इसके अलावा आंखों की झिल्ली में खून का स्राव भी देखने को मिलता है बाद में गले के नीचे और जबड़े में अत्याधिक सूजन भी देखने को मिलती है जहां पशु के अगले दोनों पर जुड़े होते हैं उस जगह को ब्रिस्केट कहा जाता है| ब्रिस्केट भी हिमोरेजिक सेप्टीसीमिया के केस में काफी सूज जाता है सूजने के कारण पशु को सांस लेने में काफी कठिनाई महसूस होती है और सांस लेने में आवाज आने लगती है यदि स्टेथोस्कोप से पशु के फेफड़ों को चेक किया जाए तो उसमें पानी के होने का पता चलता है| नाक से सांस ना ले पाने के कारण पशु मुंह खोलकर हाँपने लगता है और उसकी जबान बाहर आ जाती है|
बीमारी की तीव्रता के आधार पर यह बीमारी 1 से 5 दिनों तक चलती है इस बीमारी की पहचान के लिए बीमारी के लक्षण ही अक्सर काफी होते हैं| इस बीमारी को क्षेत्रीय भाषा में गलघोटू भी कहते हैं कंफर्म डायग्नोसिस के लिए पशु के खून को लैब में भेजा जाता है जहां पर माइक्रोस्कोप में पाश्चरेला बैक्टीरिया को देखा जाता है यह बैक्टीरिया बाइपोलर होते हैं और आम स्टेनिंग टेक्निक से इसे नहीं देखा जा सकता पशु के थूक और सूजन से निकलने वाले द्रव्य में भी यह जीवाणु उपस्थित रहते हैं और हड्डियों तक भी यह पहुंच जाते हैं पशु पशुओं में पता लगाने के लिए खरगोशों के पेट में इन बैक्टीरिया को डाल कर उसके लक्षण देखते हैं| इस बीमारी को एंथ्रेक्स, ब्लैकवाटर या किसी तरीके की टोकसिटी पॉइजनिंग से अलग करके देखना चाहिए यदि समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए तो इस बीमारी से पशु को बचाया भी जा सकता है इसके लिए पशु को सल्फा ड्रग के इंजेक्शन दिए जाते हैं सल्फा ट्राईमेतोप्रेम का कंबीनेशन और स्ट्रैप्टो पेनिसिलिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक काफी कारगर रहती हैं इसके अलावा एनाल्डिन और सूजन को कम करने के लिए फ्रुज़ीमाइड दिया जाता है|
यह बीमारी मनुष्यों में नहीं फैलती और ऐसे पशुओं का दूध भी सेवन के लिए ठीक रहता है बशर्ते उसे अच्छी तरह उबाल लिया गया हो