Dairy heifer production is an important part of the dairy industry. The objective of this article is to provide information on dairy heifer production, growth and nutrition. In order to produce a healthy and productive cow, it is important that the calf has a good start on life. This is where the dairy heifer production process begins. The first few months of life are critical for the calf’s development, which will determine its future health and productivity.
Replacement of old unproductive animals – डेयरी फार्मिंग में नए पशुओं को फॉर्म में लाना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि सभी पशु अच्छा प्रदर्शन करें ऐसा होना काफी कठिन होता है समय-समय पर पशु किसी न किसी कारण से खराब होते रहते हैं जिसकी वजह से उनकी उत्पादन क्षमता घटती रहती है| हमें इस बात को देखते रहना पड़ता है जिससे फॉर्म के अंदर होने वाले नुकसान उसे बचा जा सके, ऐसे ख़राब पशुओं को नए पशुओं से बदलना आवश्यक होता है| नए पशु हमेशा बाहर से खरीद कर नहीं लाए जा सकते उन्हें हमें फॉर्म में मौजूद बछियों को तैयार करके लेना पड़ता है जो भी बछड़ी फॉर्म में पैदा होती है उसका खास ख्याल रखना पड़ता है ताकि आगे जाकर वह एक अच्छी उत्पादन करने वाली गाय के रूप में हमारे फॉर्म में शामिल हो सके|
इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए की फॉर्म में बड़ी हुई गाय बाहर से खरीदी जाने वाली गायों से लगभग एक तिहाई सस्ती होती है और बाहर से आने वाले पशुओं के मुकाबले 2 गुना तक अच्छा प्रदर्शन करती है| अपने फॉर्म में बढ़े हुए पशु मैं बीमारियां कम आती हैं और उनके रखरखाव में भी कम खर्च करना पड़ता है क्योंकि वह फॉर्म के वातावरण में शुरू से ही घुले मिले रहते हैं| ऐसे पशुओं में सामाजिक तनाव भी कम देखने को मिलता है| आज हम डेयरी फार्मिंग में मौजूद जिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं वह दिन-ब-दिन और गहन होती जा रही हैं इसका कारण यह है की अनुवांशिक विकास पर तो काफी ध्यान दिया जा रहा है परंतु पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाता| जिसके कारण पशु उत्पादन के तनाव में आकर बेकार हो जाता है एक डेयरी किसान का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह एक स्वस्थ हीफर तैयार करें जो 24-26 वे महीने की आयु में बछड़े को जन्म दे दे ऐसा करने के लिए किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है| इस प्रकार से बड़े किए गए पशु शाम के लिए बहुत उपयोगी साबित होते हैं|
अच्छी हीफर तैयार करने के लिए कई महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना पड़ता है जैसे पशु की आवासीय व्यवस्था, उसका पोषण, ब्रीडिंग और प्रजनन प्रबंधन, साथ ही साथ उसके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पड़ता है| यदि आवासीय व्यवस्था की बात की जाए तो पशुओं का आवास सूखा और हवादार होना चाहिए हवादार होने का यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है की फार्म के अंदर सीधे हवा के झोंके आएं क्योंकि ऐसा होने से गर्मियों में धूल की दिक्कत आती है और ठंड में पशुओं में कोल्ड स्ट्रेस होने की संभावना रहती है| फार्म फर्श पर खास तौर से ध्यान देना चाहिए कि वह पशु के लिए आरामदायक हो| इसके लिए काऊमैट या रेत की व्यवस्था होनी चाहिए| हीफरों को उन्हीं की आयु और कद काठी वाले पशुओं के साथ रखना चाहिए ऐसा करने से सामाजिक तनाव कम होता है और पशु भरपूर फीड खाता है अन्यथा सामाजिक तनाव के चलते कुछ गुस्सैल और बड़े पशु छोटे पशुओं को ठीक से खाने नहीं देते जिससे उनकी बढ़वार पर गहरा असर पड़ता है| प्रत्येक पशु को कम से कम 6 इंच की बंक स्पेस मिलनी चाहिए, यह स्पेस वह जगह होती है जो मैनेजर या नांद बनाते समय ध्यान में रखनी चाहिए यदि मैनजर की लंबाई 60 इंच है तो वहां पर 10 हीफरों को रखा जा सकता है जिनकी आयु 4 से 11 महीने के बीच होती है| जब बछड़ी 4 महीने की हो जाती है तो उसे हीफर वाले बाड़े में भेज देना चाहिए और उसी हिसाब से उसकी केयर करनी चाहिए|
हीफर का पोषण (heifer nutrition) काफी आवश्यक कार्य होता है सही पोषण मिलने से ग्रोथ अच्छी होती है और हमारा पशु सही समय पर गर्भधारण करने के लिए तैयार हो जाता है शुरुआती समय में जब बछिया 3 महीने से कम आयु की होती है तब उसे अच्छा मिल्क रिप्लेसर और काफी स्टार्टर देना चाहिए ताकि वह 500 से 600 ग्राम प्रतिदिन के वजन के हिसाब से बढ़ सके और सही समय पर ब्रीडिंग वेट हासिल करें इसके लिए हीफर के रुमेंन के विकास पर शुरू से ही ध्यान देना चाहिए| यदि शुरुआती दिनों में बछिया के विकास पर ध्यान ना दिया जाए तो उसका रूमेंन ठीक से विकसित नहीं हो पाता जिसकी वजह से बाद वाले समय में ग्रोथ पर बुरा असर देखने को मिलता है क्योंकि जब तक बछिया मिल्क रिप्लेसर या दूध पीती रहती है तब तक उसकी ग्रोथ अच्छी दिखती है परंतु जैसे ही मिल्क रिप्लेसर छूटता है तो ग्रोथ रुक जाती है क्योंकि उसका रुमेन अच्छे से विकसित नहीं हुआ होता| तो रुमेन का विकास एक महत्वपूर्ण कार्य होता है जिस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता|
हीफर में ब्रीडिंग का सही समय – हीफर को तैयार करने का तरीका यह होता है कि समय-समय पर उसके भार को किसान चेक करता रहे और स्टैंडर्ड ग्रोथ कर्व से उसे मिलाता रहे यदि यह ग्रोथ कम या ज्यादा हो तो उसकी वजह का पता लगाकर उसका निवारण करे| भारतीय परिस्थितियों में एक हीफर को 16 से 17 महीने की आयु तक गाभिन करा देना चाहिए जिससे वह 25-26वे महीने पर बछड़े को जन्म दे दे| इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि इस आयु में हीफर अपनी ग्रोइंग स्टेज में रहती है मतलब उसका शरीर विकसित होता रहता है तो अतिरिक्त पोषण की व्यवस्था करते रहनी चाहिए| ब्रीडिंग के समय का उपयुक्त वजन इस बात पर निर्भर करता है कि वह कौन सी ब्रीड का पशु है|
भैंसों के अंदर अक्सर यह देखा गया है की बछिया ठीक से वजन नहीं ले पाती है इसका एक कारण यह होता है कि शुरुआत में बछिया को ठीक से दूध नहीं पिलाया गया होता है, क्यूंकि भैंस एक तो दूध कम देती है और उसका दूध मंगा बिकता है! और मिल्क रिप्लेसर भैंसों की फार्मिंग में अमूमन इस्तेमाल नहीं किया जाता है| बछड़ों या बछिया को केवल भूसे या हरे चारे पर रखा जाता है जिससे उनके शुरुआती समय में पर्याप्त प्रोटीन और ऊर्जा नहीं मिल पाते और उस कीमती समय में ग्रोथ रुक जाती है यदि शुरुआत से दूध मिल्क रिप्लेसर की अच्छी फीडिंग की जाए और रुमेन के विकास पर ध्यान दिया जाए तो भैंसों में भी ब्रीडिंग वेट को जल्दी हासिल किया जा सकता है|
Join us on twitter for regular updates