बकरियों की अच्छी तरह देखभाल और पर्याप्त बचाव के तरीक़ो को इस्तेमाल करके बकरी पालन व्यवसाय में अच्छे मुनाफ़े कमाए जा सकते हैं. (We can earn good profits if we would take care of health of our goats)
कुछ बातें हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए जैसे, वातावरण बदलने का ख़याल रखें उसमे अक्सर बकरिया बीमार पड़ जाती हैं. रोज़ाना धूप और ताज़ी हवा की व्यवस्था करें. उसकी आवश्यकता अनुसार संतुलित आहार दें अनु स्वच्छता का ख़याल रखें. (We should remember that changing environmental factors impact health of goats, we should take care of natural light, ventilation and temperature. We should provide balance ration to our goats)
अच्छी सवास्थ व्यवस्था बनाने के लिए निम्न बातों का ख़याल रखा जाना चाहिए. – If you want to make good health of your goats you should take following points very seriously.
1) रोज़ाना बकरियो का स्वास्थ अवलोकन करें (Give a look to your goats on daily basis and point out goats showing abnormal behavior)
2) प्रतिदिन के प्रबंधन कार्यो को अच्छे से देखें (Keep a tract of routine farm management activities)
3) संतुलित आहार दें जिसमे रेशा युक्त हरा या सूखा चारा हो, पर्याप्त उर्जा और प्रोटीन के स्रोत हो (Always provide healthy scientifically formulated ration which have green and dry fodder and have energy and protein sources)
4) बाहरी और अंदरूनी परजिवियो से बचाने के उपाय करें ( Prevent goats from internal and external parasites)
5) स्वच्छता का ख़ास ख़याल रखें (Take care of farm hygiene)
6) बकरियों के रहने की जगह, चारा खाने और पानी पीने के बर्तनो को सॉफ रखें उसमे गोबर या पिशाब ना हो (It should be take care that living and dwelling place of goats, their feeding and drinking equipment should be clean and they should not have any urine or feces)
7) धूप और खुली हवा का इंतेज़ाम हो (In open area ample sunlight and air should be available)
8) खुरों को आवश्यकता अनुसार हर 1.5 से 2 महीने के अंतराल पर बनाते रहें (Regular hoof trimming should be done)
9) टिट्नस, ईटी, और PPR का टीका नियमित रूप से लगवायें. (Tetanus, ET, PPR and other vaccines should be given on regular intervals)
स्वस्थ बकरी की पहचान (Identification of healthy goats)
1) भरपूर खाती है और जुगाली करती है (They have good appetite, eat ample and regularly perform cud chewing)
2) चमकते हुए मुलायम बाल होते हैं. (Have shining and smooth skin and hairs)
3) किसी बीमारी के कोई बाहारी लक्षण नही दिखते (Do not have any external disease symptoms)
4) मज़बूत टाँगे और खुर होते हैं (Have strong legs and hooves)
5) बाकी बकरियो में घुलमिलकर रहती है और चौक्कनी रहती है (Live together with other goats and remain attentive)
6) चमकती हुई साफ आखें दिखाई देती हैं (Have bright clear eyes)
7) आँख मूह या नाक से कोई रिसाव नही होता (Do not have any secretion from mouth or nose)
8) मेंगनी ठोस, गोल और अलग अलग रहती है. (Feces are solid, round and separate)
स्वस्थ बकरियो के शारीरिक माप
- तापमान (Body Temperature) – 101.50F से 1030F
- दिल की धड़कन (Heart Beat)- 70 से 80 प्रति मिनट
- सांस लेने की गति (Respiratory Rate) – 12 से 15 प्रति मिनट
- बकरी के जवान होने की आयु (Maturing Age) – 8 से 12महीने
- Estrus में बकरी के गरम रहने की अवधि (Estrus Period for Mating) – 12 से 72 घंटे
- हीट साइकल (Estrus Cycle Duration) – 18 से 22 दिन
- ग्याबन काल (Pregnancy Duration) – 5 महीने
बीमारी की चेतावनी देने वाले चिन्ह (Disease Signs in Goats)
- बकरी खाना पीना छोड़ देती है एर जुगली करना भी बंद कर देती है (Goat left feeding and drinking and also stop cud chewing)
- अपने दांतो को घिसती है जिससे आवाज़ आती है (Teeth grinding)
- अन्य बकरियों से अलग खड़ी हो जाती है (Separate from other goats)
- वज़न घटने लगता है (Weight loss)
- बाल झड़त्ते हैं और खाल रूखी हो जाती है (Hair loss and rough hair coat)
- आँखो से पानी आने लगता है (Secretions from eyes)
- खड़ा होना पसंद नही करती (Do not like to stand)
- गोल गोल घूमकर चक्कर काटने लगती है (Circling movement may seen)
- बुखार आता है (Shows fever)
- अनेमिया (खून की कमी हो जाती है) (Shows Anemia)
- दस्त हो जाते हैं (Diarrhea)
- मूह और नाक में से पानी आने लगता है (Watery secretions from mouth and nose)
- खाँसी उठती है (Have cough)
बकरी के बच्चो में बीमारी के चिन्ह (Signs of illness in goat kids)
कोई भी बीमारी बच्चो में ज़्यादा घातक हो सकती है यदि समय पर इलाज ना किया जाए क्यूंकी बच्चो की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है इसलिए प्राथमिक उपचार करना बहुत ज़रूरी हो जाता है. (Immune power in kids is very less so any disease which affect goats may be more serious in kids than adults and if we do not treat the disease on time then we may lose kid which causes economic losses)
बीमारियो की निशानियाँ (Signs of illness in goat kids)
1) बुखार (Fever)
2) खाना पीना छोड़ देते हैं (Left feeding)
3) कमज़ोरी होती है जिससे खड़े होने में असमर्थ हो जाते हैं (Become weak and cannot stand on its own)
4) दस्त होते हैं (Diarrhea)
5) ज़ोर ज़ोर से सांस लेते हैं (Increase respiratory rate)
6) पानी की कमी हो जाती है (निजरलीकरण) (Dehydration)
7) जोड़ सूज जाते हैं (Joint swelling)
बकरियो के बच्चे ही बकरी पालन से होने वाली आय का मुख्य स्रोत होते हैं इसलिए ये आवश्यक होता है की बच्चो की सही तरह से देखभाल की जाए जिससे वो कम बीमार पड़े और बढ़वार भी अच्छी हो. Goat kids are the major source of income in goat farming that is why their proper care is very necessary so that they don’t fall in disease and remain healthy so that their growth will be good
बच्चो के स्वास्थ से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु. (Some important points related to goat kid’s health)
1) पैदा होने के बाद बच्चो के मरने के दो मुख्य कारण होते हैं पहला निमोनिया और दूसरा दस्तो का लगना (After birth the main reasons for death of kids are pneumonia and diarrhea)
2) पहले एक महीने में बच्चो के मरने की आशंका 70% तक होती है (In first month the chances of mortality are 70%)
3) जिन बच्चो को खीस नही पिलाया जाता वो बच्चे ज़्यादा मौत का शिकार होते हैं (Kids which do not have taken colostrum after birth have higher chances of mortality)
4) भारी पैदा हुए बच्चे कम बीमार पड़ते हैं और उनकी बढ़वार भी अच्छी होती है (Kids which are heavier at birth have higher survival rates and they grow faster)
5) इसलिए ग्याबन बकरी को आख़िरी डेड (1.5) महीने में अच्छा पोषण देना चाहिए (Therefor for pregnant goats in last one and half month good feeding should be done)
6) मार्च अप्रैल में पैदा हुए बच्चे कुछ कमज़ोर और अधिक संवेदनशील होते हैं इसलिए उनका ख़ास ध्यान रखना चाहिए. (Kids born in March April are more sensitive and they need higher care)
बीमारी से बचाने के लिए और स्वस्थ शुरुआत के लिए नवजात बच्चो में किए जाने वाले कार्यो का विवरण इस पुस्तिका के बकरी के रखरखाव संबंधित भाग में दिया गया है. (To save new born kids from disease and things to perform at the time of kidding is available in book named “Commercial Goat Farming”)
बकरियो में बीमारी का पता लगाना और प्राथमिक उपचार (Disease diagnosis in goats and their first aid)
यहाँ दी गयी जानकारी केवल बकरी पालको को अस्वस्थ बकरियो की जानकारी देने के उदेश्य से दी जा रही है और इसका लक्ष्य केवल ज्ञान वर्धन है कोई भी उपचार करने से पहले डॉक्टर अथवा विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें. The purpose of information given here is just to aware the farmer and before giving any medicine to goats take advice of your vet)
बीमार बकरी की देखभाल करने लिए दोनो तरह के उपचार की ज़रूरत होती है एक विशिष्ट उपचार और सहायक उपचार. जैसे दस्तो की बीमारी में दो प्रकार की दवाई दी जाती है एक दस्त रोकने के लिए दूसरी शरीर में नमक और पानी की कमी को पूरा करने के लिए. क्यूंकी दस्तो के दौरान मौत शरीर में अत्यधिक पानी की कमी के कारण होती है. कौन सी दवाई काम करेगी उसके लिए यह जानना बहुत आवश्यक है की दस्तो का मुख्य कारण क्या है. दस्तो के कई कारण हो सकते हैं. जैसे परजीवी, जीवाणु, कीटाणु या अत्यधिक दाना खाना. इसीलिए बीमारी पहचानने के लिए किताबी जानकारी और तजुर्बा दोनो की ही ज़रूरत पड़ती है. गाओं के दूर दराज़ के इलाक़ो में जहाँ डॉक्टर आसानी से नही पहुँच पाते वहाँ प्राथमिक उपचार की जानकारी किसानो के लिए एक वरदान साबित होती है.
To correct the disease in goats we have to perform 2 types of treatment, first is specific treatment and second is supportive therapy. For example in diarrhea 2 types of medicine is given. First is given to stop diarrhea and second is given to restore body fluid and electrolytes. Because during diarrhea lots of water of body gets drained into via intestine into the feces and death occurs due to dehydration. There are many causes of diarrhea like parasites, bacteria, viruses or grain engorgement. Because of this reason experience along with bookish knowledge will be helpful in saving animals. In remote villages where doctors may not available such knowledge may become boon for farmers.
बकरियो में तापमान को मापना (How to take temperature in goats)
बकरियो का सामान्य तापमान 101.50F से 102.50F होता है. बाज़ार में मिलने वाले एलेक्ट्रॉनिक थार्मामीटर काफ़ी उपयोगी होता है. किसी भी संक्रमण में बुखार तेज़ी से चड़ता है और कई बार यह बुखार जानलेवा भी होता है इसलिए बकरी पालको को एक थर्मामीटर अवश्य रखना चाहिए. (The normal temperature of goats are between 101.50F to 102.50F. Body thermometers found in market are useful. In many infectious diseases high fever occurs which may causes death, farmers should have thermometers with them.)
तरीका (Procedure)
1) सबसे पहले उसे रूई या कपड़े से साफ कर लें फिर साइड में दिया हुआ बटन दबायें उसमे से एक आवाज़ आएगी फिर उसे 10 सेकेंड हाथ में रखें| (First of all clean up the thermometer with cotton and push the side button, beep sound occurs after that keep thermometer in hand for 10 seconds)
2) उसे फिर बकरी के मलाशय (जहाँ से मेंगन निकलती है) वहाँ 1 इंच घुसा कर हल्का सा टेढ़ा कर लें| (Insert that thermometer in to the anus (up to 1 inch) of goat and tilt it so that it would touch the mucous membrane.)
3) 2 मिनट इंतेज़ार करें, उसमे से एक बीप की आवाज़ आएगी| (Wait for 2 minutes, a beep sound occurs)
4) निकाल कर साफ करें और संख्या नोट कर लें. (Take out thermometer and note its value)
5) उसे से पहले उसके आगे वाले हिस्से को डीटॉल या साबुन से साफ कर लें. Clean it with spirit or dettol and keep it in box