यह सब सवाल आम तौर से किसान पूछते हैं हालाँकि कई लोग जो भैंस पालते हैं अपने व्यवहारिक ज्ञान से इन स्थितियो को समझते हैं परंतु यहाँ दिए गये उत्तर उन लोगो के लिए . उपयोगी हैं जो नया डेरी फार्म शुरू करना चाहते हैं.
प्र0 भैंस खुलकर गर्मी में नहीं आती। गाभिन करायें या नहीं?
उ0 भैंस में गर्मी के लक्षण बहुत हल्के होते हैं। उनकी तुलना गाय से नहीं करनी चाहिए। लक्षण यदि ठीक प्रकार से पहचान में नहीं आ रहे हैं तो डाक्टर से जांच करा लें। इसके अलावा यदि डाक्टर उपलब्ध नहीं है तो आप इस गर्मी को छोड़ भी सकते हैं। लेकिन इस गर्मी की तारीख कहीं पर लिख कर रख लें । 20-22 दिन बाद यदि ये लक्षण फिर आते हैं तो यह समझें कि भैंस निश्चित रूप से गर्मी में है। भैंस को अवश्य गाभिन करायें।
प्र0 भैंस डोका करती है, पर बोलती नहीं। क्या करें?
उ0 कुछ भैंसों में शांत मद (silent heat) के कारण गर्मी के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं। परन्तु गर्मी में आने से 3-4 दिन पहले तक उसके थन दूध से भरे दिखाई देते हैं इसे डोका कहते हैं। आमतौर पर डोका इस बात का सूचक माना जाता है कि भैंस गर्मी में आने वाली है। अत: डोका करने के 3-4 दिन बाद यदि भैंस तार देती है तो समझें कि भैंस गर्मी में है और गाभिन करायें। यदि डोका लम्बे समय तक बना रहता है तो डाक्टर द्वारा जांच करा लें कि कहीं डिंबग्रंथि (Ovary) में कोई सिस्ट (cyst) तो नहीं बना है और इलाज करायें।
प्र0 भैंस गर्मी के लक्षण दिखाती है, परन्तु जब उसे झोटे (male buffalo) के पास ले जाते हैं तो झोटा सूंघ कर चला जाता है तथा ऊपर नहीं चढ़ता है, क्या भैंस गर्मी में नहीं होती?
उ0 नर भैंसा स्वभाव से सुस्त होता है तथा उसमें मैथुन की इच्छा कम होती है। उस दिन झोटे ने पहले किसी और भैंस को गाभिन कर दिया है तो यह इच्छा और कम हो जाती है। उम्र बढ़ने के साथ कुछ झोटे तो भैंस में बिल्कुल भी रूचि नहीं दिखाते। सबसे अच्छा है कि आप भैंस को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र (artificial insemination center) पर ले जाकर डाक्टर द्वारा जांच करवा कर भैंस को उच्च गुणवता वाले वीर्य (semen) से गाभिन करायें।
प्र0 गर्मी में आने पर भैंस को कब गाभिन करायें?
उ0 भैंस आमतौर पर 24 घंटे गर्मी में रहती है। इस दौरान उसे कभी भी गाभिन कराया जा सकता है। लेकिन वैज्ञानिक सलाह यह दी जाती है कि उसे गर्मी के अंतिम 12 घंटो में कभी भी गाभिन करा लें, अर्थात गर्मी में आने के 10-12 घंटे बाद। कुछ किसान भाइयों की यह सोच है कि भैंस को तब गाभिन करायेंगे जब वह ठंडी हो जायेगी । गर्मी समाप्त होने पर भैंस को वह अगले दिन लाते हैं। यह सोच बिल्कुल गलत है। इस स्थिति में भैंस के गाभिन होने की संभावना बहुत कम रह जाती है। अत: भैंस को समय पर गाभिन करायें। आमतौर पर 12 घंटे के अंतराल पर दो बार गाभिन करवाना लाभप्रद रहता है।
प्र0 भैंस को गाभिन कराने के बाद क्या सावधानी रखें कि भैंस रूक जाये?
उ0 भैंस को गाभिन कराने के बाद अधिक दूर तक पैदल न चलायें। उसे मारें-पीटें और भगायें नहीं। गाभिन कराने के बाद उसे ठंडा पानी पिलायें, खूब नहलायें और कम से कम दो हफ्ते तक ठंडी जगह बांधे । भैंस को हरा चारा खिलायें तथा दाने में 40-50 ग्राम खनिज लवण (mineral mixture) जरूर मिलायें। गर्भाधान के 20-22वें दिन भैंस पर कड़ी नजर रखें कि दोबारा गर्मी में तो नहीं है। गर्भाधान के 2 महीने बाद गाभिन होने की जांच जरूर करायें।
प्र0 किस नस्ल की भैंस सबसे अच्छी है तथा हमें किस नस्ल के झोटे / वीर्य से भैंस को गाभिन कराना चाहिए?
उ0 संसार में सबसे अच्छी नस्लें मुख्य रूप से केवल भारत और पाकिस्तान में ही पायी जाती हैं। भारतीय नस्लों में मुर्रा, नीली-रावी, मेहसाना, सूरती, जाफराबादी, नागपुरी, पंढारपुरी तथा भदावरी प्रमुख हैं। हरियाणा राज्य की मुर्रा भैंस को दूध और सुंदरता के आधार पर सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। भैंस को गाभिन कराने के लिए क्रमानुसार निम्न बातों को प्राथमिकता देनी चाहिए-
पहली : यदि आपकी भैंस किसी भी शुद्ध नस्ल की है तो सबसे अच्छा होगा कि आप उसी नस्ल के झोटे से भैंस को गाभिन करायें।
दूसरी : यदि आपकी भैंस देशी या मिश्रित नस्ल की है तो उस क्षेत्रा में पायी जाने वाली नस्ल के झोटे से भैंस को गाभिन करायें।
तीसरी : यदि उस क्षेत्रा की कोई विशेष दुधारू नस्ल नहीं है और आप दुधारू नस्ल पैदा करना चाहते हैं तो उस भैंस को मुर्रा नस्ल के झोटे / वीर्य से गाभिन करायें।
प्र0 भैंस को तीन–चार बार झोटे से मिलवाया है परन्तु हर 20-22 दिन बाद फिर गर्मी के लक्षण दिखाती है। कोई उपाय बताएं?
उ0 कई बार झोटे से मिलन के बावजूद भी यदि भैंस नहीं ठहरती है तो इसके कई कारण हो सकते हैं, इसका इलाज भी कारण का पता चलने पर ही सम्भव है।
संभव है कि झोटा ही नपुंसक (impotent) अथवा कम जनन क्षमता वाला हो। इसका पता इस बात से चल सकता है कि उस झोटे से गर्भित होने वाली बाकी भैंसे गाभिन ठहरती हैं या नहीं। इसकी जाँच कर लें। अधिकतर भैसें सर्दियों के मौसम में गर्मी में आती है, इससे झोटों पर अधिक दबाव रहता है। यदि झोटे में खोट है तो झोटा बदल कर देख लें अथवा कृत्रिम गर्भाधान ही कराऐं।
यदि कृत्रिम गर्भाधान कराने पर भैंस फिरती है तो हो सकता है कि गर्भाधान सही समय पर नहीं किया गया है, गर्भाधान विधि उचित नहीं है या फिर हिमीकृत वीर्य की गुणवत्ता ठीक नहीं है। उसकी जांच करवाएं।
कुछ भैंसों में हारमोनों के असंतुलन से अण्डा (ovum) सही समय पर नहीं छुटता है। इससे निषेचन पश्चात यदि भ्रूण (embryo) बनता भी है तो उसके जिंदा रहने की संभावना बहुत कम रहती है। गर्भाधान के बाद यदि भ्रूण 15 दिन के अंदर ही मर जाता है तो भैंस 20-22 दिन बाद ठीक समय पर गर्मी में आती है। परन्तु यदि भ्रूण की मृत्यु (embryonic mortality) गर्भधारण के 16 दिन पश्चात् होती है तो भैंस पूरे चक्र(20-22दिन) से अधिक समय बाद गर्मी के लक्षण दिखाती है।
बच्चेदानी में संक्रमण (uterine infection) होने से भी भैंस नहीं ठहरती है। इसका पता गर्मी के समय (दिखाई देने वाले तार से चल सकता है। आमतौर पर यह तार शीशे/पानी की तरह साफ होना चाहिए। यदि इसमें सफेदी या कोई छिछड़े हैं तो इसका तात्पर्य है कि बच्चेदानी में संक्रमण है। इस अवस्था में पहले इलाज करा कर ही भैंस को गाभिन कराने का प्रयास सफल रह सकता है।
कुछ भैंसो में डिंबग्रंथि (ovary) पर बनने वाला पीतपिंड (corpus luteum) पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता। जिससे वह पर्याप्त मात्राा में प्रोजेस्ट्रोन हारमोन पैदा नहीं कर पाता है । विकासशील भू्रण को उपयुक्त वातावरण नहीं मिलने से उसकी मृत्यु हो जाती है। रोग निदान करने के बाद पशु चिकित्सक भैंस को गाभिन करवाने के 3-4 या 10-12 दिन बाद उपयुक्त हारमोन के टीके लगाते हैं। इससे पीतपिंड द्वारा प्रोजेस्ट्रोन उत्पादन बढ़ जाता है।
प्र0 असली मुर्रा नस्ल की पहचान क्या है?
उ0 मुर्रा नस्ल की भैंस के सींग छोटे परन्तु गोलाई में अन्दर की ओर कसकर मुड़े (spiral shape) होते हैं। भैंस की त्वचा पतली व पूरा शरीर एकदम काला (jet black) और पूंछ भी काले रंग की होती है। भैंस का सिर हल्का तथा गरदन पतली होती है। इनका पिछला हिस्सा चौड़ा तथा अगला हिस्सा संकरा होता है। इनका अयन काफी विकसित होता है तथा दूध उत्पादन क्षमता 2000-3500 कि0ग्रा0 प्रति ब्यांत होती है। सींगों का खुला होना, शरीर के बालों पर तांबे जैसी झलक दिखाई देना या सफेद बाल होना तथा पूंछ सफेद होने को नस्ल के मुख्य लक्षणों से विचलन (impurity in breed) मानते हैं। वैसे इस प्रकार की भैंसे भी मुर्रा ही हैं, परन्तु प्रदर्शनी/प्रतियोगिता/प्रजनन के लिए चयन आदि में नस्ल के मुख्य शारीरिक लक्षणों को प्राथमिकता दी जाती है। आमतौर पर दूध की प्रतियोगिताओं में नस्ल विशेष के शारीरिक लक्षणों में कुछ विचलन होने पर समझौता करना पड़ता है। परन्तु इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाता है कि वह लक्षण किसी अन्य नस्ल का मुख्य लक्षण तो नहीं है तथा उस लक्षण की प्रतिशतता अधिक नहीं है। शारीरिक लक्षणों में मान्य विचलन के लिए अभी तक निश्चित मानदंड तय नहीं है। यह सब प्रतियोगिता/चयन के उद्देश्य तथा जज/चयनकर्ता के विवेक पर निर्भर करता है।
प्र0 हमारे पास 10-12 भैंसें हैं। हम यह चाहते हैं कि सभी भैंसे एक ही दिन गर्मी में आकर गाभिन हो जायें। क्या कोई उपाय है?
उ0 हाँ, बिल्कुल है। आप पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें। पशु चिकित्सक भैंस की जांच करके प्रोस्टाग्लैंडिन या उपयुक्त हारमोन के इंजेक्शन लगा देते हैं, जिसके बाद सभी भैंसे एक ही दिन गर्मी में आ जाती हैं। इसका एक लाभ यह भी है कि भैंस में गर्मी के लक्षण देखने की आवश्यकता नहीं रहती व टीके के निर्धारित समय पश्चात गर्भाधान किया जा सकता है। यह भी ध्यान रखें कि हारमोन का टीका हर पशु में हर समय काम नहीं करता। साथ ही गाभिन पशु में अत्यन्त सावधानी रखें क्योंकि कुछ टीके गर्भपात भी करवा सकते हैं।
प्र0 भैंस को कई बार गाभिन कराया है, परन्तु अभी तक रूकी नहीं है। क्या भ्रूण प्रत्यारोपण द्वारा उसके अंदर भ्रुण रखकर गाभिन किया जा सकता है?
उ0 इसका उत्तर मोटे तौर पर नहीं है। इसका कारण यह है कि भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक बहुत ही मंहगी है। अत: भ्रूण केवल उन्हीं मादा भैंसों में डालते है जो जनन की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ हैं तथा केवल एक बार वीर्य डलवाने पर गाभिन हो जाती हैं। गर्मी में न आने वाली, बार-बार फिरने वाली, जनन समस्याओं से ग्रसित भैंसें, भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए उचित नहीं होती। हाँ ऐसे पशु में कृत्रिम विधि से हारमोन के टीके लगवाकर दूध उत्पादन शुरू करवाया जा सकता है।
प्र0 भैंस के गर्मी में आने पर उसे वीर्य का टीका लगवा लिया। फिर डा0 साहब ने कहा कि इसे झोटे से भी करा लेना, अच्छी गर्मी में है। उसे हमने झोटे से भी करा लिया। अब होने वाला बच्चा किसका होगा?
उ0 वीर्य का टीका लगवाने के बाद यदि किसी डाक्टर ने ऐसा कहा है कि इसे झोटे से भी करा लेना तो यह बहुत ही अवैज्ञानिक तरीका है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। किसान अपनी भैंस का कृत्रिम गर्भाधान इसलिए कराता है ताकि उसकी होने वाली नस्ल सुधार सके। यदि उसे झोटे से ही कराना होता तो वह गर्भाधान केन्द्र पर क्यों आता। ऐसी स्थिति में यह बताना तो निश्चित रूप से कठिन है कि बच्चा कृत्रिमगर्भाधान वाला होगा या प्राकृतिक गर्भाधान वाला। परन्तु यहां उन परिस्थितियों का जिक्र करना उचित होगा जब कृत्रिम गर्भाधानकर्ता ऐसी सलाह देता है –
खराब गुणवत्ता वाला वीर्य – ऐसी स्थिति में कृत्रिम गर्भाधानकर्त्ता को ऐसे वीर्य से गर्भाधान करने की अपेक्षा साफ मना कर देना चाहिये कि वीर्य की गुणवत्ता सही नहीं है और आप कहीं दूसरी जगह गर्भाधान करा लें।
नौसिखिया कृत्रिम गर्भाधानकर्त्ता : यदि गर्भाधानकर्त्ता नौसिखिया है तो अक्सर ऐसा कह देता है ताकि उसके द्वारा गर्भाधान दर अधिक हो जाये।
गर्भाशय ग्रीवा की विकृति : कभी-कभी ऐसा भी होता है कि भैंस तो पूरी तरह गर्मी में होती है, परन्तु गर्भाशय ग्रीवा की विकृति के कारण कृत्रिम गर्भाधान नलिका गर्भाशय ग्रीवा में नहीं जा पाती। इस स्थिति में गर्भाधानकर्त्ता के पास कोई विकल्प नहीं बचता और वीर्य को योनि में ही छोड़ना पड़ता है। जहां गाभिन रहने की संभावना बहुत ही कम होती है। भैंस इसी चक्र में गाभिन हो जाये और किसान को फिर से अगले मद चक्र का इंतजार न करना पड़े तो कृत्रिम गर्भाधानकर्त्ता उसे झोटे से गाभिन कराने की सलाह दे देता है।
कृत्रिम गर्भाधान कर्त्ता का कार्य संतोषजनक होने की संभावना यदि कम है तो बेहतर होगा कि आप अपनी भैंस को केवल झोटे से ही मिलवाएं। अन्यथा पशु से बेकार छेड़छाड़ की जाएगी और अनुचित विधि द्वारा बच्चेदानी में व्यर्थ ही गर्भाधान नलिका डालने से संक्रमण की भी संभावना हो सकती है।
प्र0 बच्चा कटड़ा होगा या कटड़ी – क्या यह पूर्व नियोजित किया जा सकता है?
उ0 यह पूरी तरह से नर झोटे के ऊपर निर्भर करता है। झोटे के वीर्य में दो प्रकार के शुक्राणु होते हैं, इन्हें X – मादा तथा Y- नर शुक्राणु कहते हैं। ये दोनों शुक्राणु लगभग बराबर संख्या में होते हैं। मादा से निकलने वाला अण्डा केवल Y -प्रकार का होता है। निषेचन के समय यदि X -शुक्राणु मादा के X -अण्डे से मिलता है तो मादा भ्रूण बनता है, जबकि Y -शुक्राणु के मादा X -अण्डा से मिलने पर नर भ्रूण बनता है। X तथा Y शुक्राणु दोनों के पास मादा के X -अण्डा से मिलन के समान अवसर होते हैं। अत: प्रकृति में नर तथा मादा का अनुपात लगभग बराबर रहता है। अभी तक वैज्ञानिक इसके पूर्व नियोजन का उपाय नहीं ढूढ़ पाये हैं जो कि हमेशा सफल रहे। हालाँकि इस दिशा में सभी प्रयासरत हैं।
प्र0 क्या भैंसों में गर्भस्थ बच्चे का लिंग पता लगा सकते हैं?
उ0 हाँ, बिल्कुल। भैंसों में गर्भस्थ बच्चे का लिंग, अल्ट्रासांउड विधि द्वारा जान सकते हैं। गाभिन कराने के 55 दिन बाद यह तकनीक प्रयोग में लार्इ जा सकती है तथा लगभग तीन महीने तक के भ्रूण का लिंग आसानी से पता कर सकते हैं।
प्र0 भैंस ने जुडँवा बच्चे दिये है – एक कटड़ा और एक कटड़ी (free martin) । इनका जनन कैसा रहेगा?
उ0 आमतौर पर भैंस में जुड़वाँ बच्चे बहुत कम होते हैं। लेकिन जुड़वाँ में यदि एक कटड़ा और दूसरी कटड़ी है तो यह मानकर चलें कि कटड़ी बांझ रहेगी। आगे चलकर उसे निकाल दें। यदि जुडवां में दोनों कटड़े हैं अथवा कटड़ी है, तो चिंता करने की कोई बात नहीं । इन दोनों स्थितियों में बच्चों का प्रजनन सामान्य रहेगा।
प्र0 भैंस के ब्याने में अभी 10-15 दिन हैं। परन्तु उसके एक थन में सूजन आ रही है। क्या करें?
उ0 भैंस का पहले ब्यांत में दूध सुखाते वक्त यदि सही सावधानियां नहीं बरती गयी हैं तो अक्सर ऐसा हो जाता है। दूध, जीवाणु की वृद्धि के लिए बहुत अच्छा माध्यम है। अत: यदि ल्योटी में कुछ दूध रह गया है तो उसमें जीवाणु वृद्धि करने लगते हैं और थनैला रोग हो जाता है। इस स्थिति में जिस थन में भी सूजन है उसका पूरा दूध तुरंत खाली कर दें और पशु चिकित्सक से मिलकर उस थन में दवार्इ चढ़़वा लें। यह क्रिया/इलाज 3-5 दिन तक जारी रखें।