देसी मुर्गी पालन कैसे करें उसकी पूरी जानकारी हमारी वेबसाइट पर मौजूद है| भारतीय मूल में पोल्ट्री प्रजाति की अनेकों नस्लें पाई जाती हैं यह नस्लें बैकयार्ड पोल्ट्री में काफी फायदेमंद साबित होती हैं इन्हें कम दाने पानी में बड़ा किया जा सकता है इनका मीट और अंडा काफी पौष्टिक होता है जो ना सिर्फ गांव में बसने वाले गरीब परिवारों के लिए एक पोषण का अच्छा साधन होता है बल्कि उनके लिए अतिरिक्त आए का जरिया भी बनता है| भारत सरकार द्वारा चलाए गए गरीबी उन्मूलन के अनेकों कार्यों में से पोल्ट्री पालन को बढ़ावा देना भी सम्मिलित है इसमें अधिक निवेश की आवश्यकता नहीं होती है कम पूंजी और लागत में वह किसान जिनके पास भूमि का अभाव रहता है इस व्यवसाय को आसानी से कर सकता है|
समय के साथ साथ जैसे-जैसे भारत में पोल्ट्री उद्योग ने अपने पैर जमाए हैं उससे कुछ महत्वपूर्ण बदलाव पोल्ट्री उद्योग में देखने को मिले हैं| जहां एक तरफ व्यवसायिक पोल्ट्री उद्योग फल फूल रहा है वहीं दूसरी ओर मुर्गियों में होने वाली बीमारियां भी दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही हैं इस बात में कोई दो राय नहीं है कि मुर्गियों में होने वाली बीमारियां पहले से अधिक जटिल हो चुकी हैं उन्हें समझना और इलाज करना आसान नहीं है| इन बीमारियों के चलते छोटे किसानों के पोल्ट्री व्यवसाय पर काफी गहरा असर पड़ता है व्यवसायिक मुर्गी पालन से नई बीमारियां देखने में आई हैं और एक धारणा यह भी गलत साबित हुई है कि देसी मुर्गियों में बिमारियां नहीं आती|
जबकि ऐसा देखने को मिला है की देसी मुर्गियों में वह सब बीमारियां उतनी ही गंभीर रूप से देखी जाती हैं जैसा कि व्यवसायिक पोल्ट्री पक्षियों में देखने को मिलती हैं आए दिन वायरल बीमारियों के आउटब्रेक ना सिर्फ व्यवसायिक पोल्ट्री उद्योग के लिए सर दर्द बने हुए हैं बल्कि बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग की कमर भी तोड़ रहे हैं| मिसाल के तौर पर पिछले कुछ वर्षों में बर्ड फ्लू के कई आउटब्रेक देखने को मिले जिससे पोल्ट्री उद्योग को काफी हानि का सामना करना पड़ा परंतु किसी भी संस्था ने इस बात को नहीं उठाया कि बैकयार्ड पोल्ट्री में कितनी हानि हुई है जबकि बैकयार्ड पोल्ट्री भारत में कुल पोल्ट्री उत्पादन का लगभग 30% तक है ऐसे में इस सेक्टर को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है| क्योंकि हमारे पास ऐसे आंकड़े नहीं हैं कि जिन से यह बताया जा सके कि कितने लोग इससे जुड़े हुए हैं|
बीमारियों की रोकथाम बैकयार्ड पोल्ट्री को आगे बढ़ाने के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है इसके लिए भारत सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है क्योंकि बढ़ती बेरोजगारी में लाइवस्टोक और पोल्ट्री उद्योग ही ऐसे बचे क्षेत्र हैं जिनकी तरफ पढ़े-लिखे युवा रोजगार के लिए आकर्षित हो रहे हैं यदि वहां पर उन्हें आर्थिक चोट का सामना करना पड़े तो यह काफी खेद का विषय है| अली वेटरनरी विजडम का हमेशा से यह उद्देश्य रहा है कि वह किसानों को जागरूक करें और उन्हें इतना सक्षम बनाए कि वह इस प्रकार से होने वाले नुकसान और से अपने पशु पक्षियों का बचाव कर सकें| इस पहल में अली वेटनरी विजडम द्वारा एक यूट्यूब चैनल की शुरुआत की गई थी जिसे न सिर्फ देश के बल्कि विदेशों के किसानों ने भी खूब सराहा और दिन प्रतिदिन उससे लाभ उठा रहे हैं इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए हमने इस वेबसाइट का भी निर्माण किया और इसमें देसी भाषा में किसानों के लिए अनेकों आर्टिकल लिखने का प्रयास किया जिससे वह लोग लाइवस्टोक और पोल्ट्री व्यवसाय में आने वाली समस्याओं को पहचान कर उनका निवारण कर सकें| बीमारियों से रोकथाम हेतु हम हमेशा से कार्यरत रहे हैं और किसानों को जागरूक करते रहे हैं और करते रहेंगे|
बीमारी शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है बेचैन होना जिसमें पशु या पक्षी के अंदर कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं जिससे बीमारी का पता लगाया जाता है| कई तरह के कारक पोल्ट्री पक्षियों में बीमारियों के लिए जिम्मेदार होते हैं इनमें बैक्टीरिया, वायरस, पैरासाइट, पोषण की कमी से होने वाली बिमारियां, जैसे मिनरल विटामिन की कमी| फंगस से निकलने वाले टॉक्सिन आमतौर से बिमारी के कारक के रूप में देखे जाते हैं| ना सिर्फ यह कारक बल्कि प्रबंधन में होने वाली कमियों के कारण भी बीमारियां होती हैं जैसे मुर्गी को पर्याप्त स्वच्छ हवा का ना मिल पाना या पानी में प्रदूषण का पाया जाना भी गहन समस्या पैदा करते हैं| जब पक्षी के अंदर बीमारी के कीटाणुया जीवाणु प्रवेश करते है तो वह तुरंत जाकर पक्षी को बीमार नहीं करते, बीमार करने में उन्हें समय लगता है और यह समय इस बात पर निर्भर करता है कि बीमार करने वाला कारक कितनी मात्रा में है और पक्षी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कितनी है कई बार यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है तो कम मात्रा में ही कारक बीमारी पैदा कर देता है| इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे एक पक्षी जिसे अच्छा दाना खाने को मिलता है और अच्छे वेंटीलेशन वाले वातावरण में रहत है , वह पानी पीता है और उस पानी में ईकोलाई की मात्रा 10 है ईकोलाई पक्षी में प्रवेश करती है परंतु उसे बीमार नहीं कर पाती क्यूंकि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता उस ईकोलाई को नष्ट कर देती है| यही पानी अगर दूसरा पक्षी पीता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता किसी कारणवश कम है तो वह उस पानी से बीमार पड़ जाता है यह छोटी सी बात समझ कर किसान अपने प्रबंधन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है जिससे बीमारियों के होने को कम किया जा सकता है आगे के लेखों में हम देसी मुर्गियों में और व्यवसायिक मुर्गियों में होने वाली अलग-अलग बीमारियों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे|