यह लिटरेचर इस बात को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है की डेरी पशुओं में दूध उत्पादन पूर्ण रूप से ब्याने से पहले किये गए मैनेजमेंट पर निर्भर करता है और थोड़ी सी सावधानी उत्पादन को कई गुना बढ़ा सकती है|
डेरी किसान अक्सर ब्याने से पहले अपने पशुओं का दाना चारा कम कर देते हैं क्यूंकि उस समय पशु का उत्पादन कम हो जाता है इसलिए पशु के ऊपर इतना ध्यान नहीं दिया जाता|
जबकि यह बात बार बार रिसर्च में साबित हो चुकी है वैज्ञानिक तौर पर पशु की ब्याने से पहले की गयी फीडिंग और केयर पशु के उत्पादन को आपकी सोच से भी अधिक बढ़ा देती है|
यह सब समझने के लिए पशु की लैकटेशन साइकिल को समझना ज़रूरी है मतलब पशु किस तरह दूध में आता है और कैसे दूध देता है| यह ग्राफ आपको यह सब समझने मदद करेगा
इस ग्राफ में यदि आप देखें तो खड़ी लाइन पर लीटर में दूध उत्पादन दिया गया है और लेटी लाइन पर ब्याने के बाद के महीने दिए गए जब पशु दूध में आता है|
नीली और लाल लाइन दूध उत्पादन को दर्शाती हैं| नीली लाइन से पता चलता है की पशु अपनी लैकटेशन साइकिल में सबसे अधिक दूध 15 लीटर के करीब देता है मतलब पीक मिल्क यील्ड 15 लीटर है| यह पशु अपनी पूरी साइकिल में 15X200 = 3000 लीटर दूध देगा वहीँ दूसरे पशु का उत्पादन जो की लाल लाइन से दर्शाया गया है, अपनी साइकिल में 18X200 = 3600 लीटर दूध देगा क्यूंकि लाल लाइन वाले पशु की पीक मिल्क यील्ड नीली वाले अधिक थी|
जो डेरी फार्मर इस तथ्य को समझ कर अपने पशुओं का मैनेजमेंट करते हैं वे नुट्रीशन की कमी की वजह से कभी नुकसान में नहीं जाते|
यहाँ दो बाते देखने वाली होती हैं
1.पहली यह की पशु जल्दी से जल्दी पीक यील्ड हांसिल करे (पीक यील्ड का मतलब जब पशु ब्यात के बाद सबसे अधिक दूध देता है और उसके बाद डाउन होने लगता है)
2.दूसरी यह की पशु अधिक से अधिक देर अपनी पीक यील्ड बनाये रखे और हर महीने 7 से 9 प्रतिशत से अधिक न गिरे
इन दो बातों को सँभालने के लिए पशु को ब्याने से पहले तैयार किया जाता है
आगे बढ़ने से पहले कुछ बातें नोट कर लें
• मार्किट में जो भी प्रोडक्ट दूध बढ़ने के लिए मिलते हैं उनमे से अधिकतर केवल कुछ समय के लिए दूध बढ़ाते है (जब तक वह प्रोडक्ट चलता है) उसके बाद पशु का उत्पादन फिर घट जाता है, इसका मतलब यह है की पशु का कुल उत्पादन ब्याने के समय जिसे ट्रांज़िशन पीरियड कहते हैं उसमे ही डीसाइड हो जाता है|
•मिनरल मिक्सचर ज़रूरी नहीं है की दूध उत्पादन को बढ़ाये, परन्तु पशु के स्वास्थ पर हमेशा ही सकारात्मक प्रभाव डालता है|
•लिक्विड कैल्शियम के मुकाबले सामान्य पाउडर कैल्शियम (डी.सी.पी) में 5 गुना तक अधिक कैल्शियम फॉस्फोरस होता है|
लैकटेशन साइकिल में छ पार्ट होते हैं
प्री काविंग ट्रांज़ीशन (21 दिन) – यह ब्याने से 21 दिन पहले शुरू होकर ब्याने के समय तक चलता है
पोस्ट काविंग ट्रांज़ीशन (21 दिन) – यह ब्याने से 21 दिन बाद का पीरियड होता है
अर्ली लैकटेशन – दूध के पहले तीन महीने (यह सत्तर दिन का समय होता है जिसमे पशु पीक लैकटेशन को हांसिल करता है) इस दौरान पशु फर्टिलिटी को बढाने के लिए होरमोन के टीका लगाया जाता है, जिससे सिस्ट बन्ने का खतरा कम हो जाता है|मिड लैकटेशन – 4 से 7 महीने (130 दिन का समय होता है) जिसमे पशु धीरे धीरे उत्पादन को कम करता है| इस दौरान यदि फीडिंग ठीक हो तो पशु वेट भी गेन करता है| इसी पीरियड में पशु को दोबारा ग्याभन कराना होता है|
लेट लैकटेशन – यह उत्पादन का अंतिम काल होता है (यह 100 से 105 दिन का समय होता है), इसमें उत्पादन बहुत कम हो जाता है जिसकी वजह से किसान पशु पे ध्यान देना छोड़ देता है और अगली ब्यात के लिए पर्याप्त वज़न ग्रहण नहीं कर पाता| यदि पशु ग्याभन हो तो इस पीरियड में उसका वेट बढ़ाना बहुत ज़रूरी होता है|
ड्राई पीरियड – ब्याने से 60 से 70 दिन पहले पशु के दूध उत्पादन को बिलकुल रोक देना चाहिए जब पशु दूध नहीं देता तो उसे ड्राई होना कहते हैं| इस दौरान पशु अपने थनों की कोशिकाओं को संगठित करता है नयी कोशिकाएं बनाता है और अगली लैकटेशन के लिए खुद को तैयार करता है| यदि पशु को 70 दन का समय न दिया जाये तो उत्पादन अगली ब्यात में 50% तक गिर सकता है| ड्राई पीरियड में वेट नहीं बढ़ाना चाहिए जैसा हो वैसा ही रखना चाहिए| इस बात का ध्यान रखें की पशु ड्राई पीरियड में अपना वज़न न गिराए यदि ऐसा होता है तो दूध उत्पादन पर बेहद नकारात्मक असर देखने को मिलता है|
पशु की इकोनिमिक्स – सामान्य फार्मिंग सिस्टम में अधिकतर पशु नुकसान मे जाते हैं ! क्यों?
यदि आप एक भैंस 70000 की खरीद कर लाते हैं तो और वो दस महीने दूध देती है और उसका औसत उत्पादन इस दौरान 8 लीटर प्रतिदिन होता है तो वह कुल 2400 लीटर दूध देती है| यदि वो बिलकुल बीमार न पड़े और अतिरिक्त खर्चे न हों तो 200 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से वह 60000 का फीड खा जाएगी| यदि दूध 45 रूपए लीटर बिके तो 108000 रूपए दूध बिकने से मिलेंगे| 70000 + 60000 = 130000 का खर्च साल भर में, यदि आपका पशु ग्याबन नहीं हो पाता तो खाली पशु की कीमत 25000 वो भी तब जब वो भैंस हो| 130000 लागत और 133000 कमाई (108000+25000)| यह स्थिति तब है जब कोई अतिरिक्त खर्चा दवाई डॉक्टर आदि पर नहीं होता ऐसे में एक भैंस 3 से 5 हज़ार तक मुनाफा देती है, या एक दो बार बीमार पड़ जाये तो नुकसान में चली जाती है|
दूसरी ओर यदि यह पशु आपके यहाँ आकार ग्याबन हो जाता है तो और बछड़ा देता है तो अगली लैकटेशन साइकिल में केवल 60000 फीड का खर्चा होगा और एक भैंस लगभग 48000 का मुनाफा देगी| तो यहाँ एक रुल को समझना ज़रूरी है वो ये की भैंस को बछड़ा पैदा करने के लिए खरीदें न की दूध के लिए, दूध तो भैंस देगी ही जब बछड़ा हो जायेगा तो|
प्रशन: जैसे ही हम अच्छे उत्पादन वाले पशु खरीद कर लाते हैं तो फार्म पर आकार तुरंत उनका उत्पादन गिर जाता है?
एक महत्वपूर्ण बात ये है की आम तौर से गैर वैज्ञानिक तरीके से पाली गयीं भैंसे जब बछड़ा देने के बाद दूध में आती हैं तो वो पीक यील्ड पर औसतन 2 महीने बाद पहुँचती हैं| किसान भी भैंस को तभी बेचना पसंद करते हैं जब वो सबसे अधिक दूध दे रही हो, तो किसान अक्सर भैंस को ब्याने 1.5 से 2 महीने बाद बेचते हैं| क्यूंकि ब्याने से 21 दिन पहले फीडिंग ठीक से नहीं हुई होती इसलिए भैंस अपनी पीक यील्ड बना कर नहीं रख पाती और आपके फार्म पर आकर तुरंत उसका उत्पादन गिरने लगता है| 14 लीटर दूध देने वाला पशु 9 से 10 लीटर पर आ जाता है| ऐसे में नुक्सान होना तय होता है| इसके अलावा एक जगह से दूसरी जगह स्थानान्तरण में जो तनाव पैदा होता है वो भी काफी दूध उत्पादन को कम कर देता है|
पशु की पोषण व्यवस्था कैसे ठीक करें जिससे वो बिना बीमार पड़े क्षमता से अधिक दूध उत्पादन करे!
यदि वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित मैनेजमेंट किया जाये तो 14 लीटर वाले पशु से 18 से 20 लीटर तक पीक उत्पादन लिया जा सकता है| लेकिन उसके लिए बच्चा होने से पहली वाली देख भाल करना आवश्यक होता है| यह ग्राफ भैसों में किये जाने वाले सम्पूर्ण मैनेजमेंट को दर्शाता है| इसमें 3 लाइन दर्शायी गयीं हैं
पशु की पोषण व्यवस्था कैसे ठीक करें जिससे वो बिना बीमार पड़े क्षमता से अधिक दूध उत्पादन करे!
दूध उत्पादन सफ़ेद लाइन से, पशु का वज़न पीली लाइन से और पशु के फीड का इन्टेक हरी लाइन से दर्शाया गया है|
सफ़ेद लाइन – दूध उत्पादन बछड़ा पैदा होने के बाद धीरे धीरे बढ़ता है और दो से ढाई महीने बाद सबसे अधिक हो जाता है जिसे पीक यील्ड कहते हैं इसमें पशु अपने शरीर में जमा उर्जा को इस्तेमाल करता है| इस पीक को हांसिल करने के लिए हमें दो महीने इंतज़ार नहीं करना चाहिए और कोशिश ये करनी चाहिए की दस से पंद्रह दिन के अन्दर पशु पीक यील्ड पर पहुँच जाये|
हरी लाइन – यह लाइन दर्शाती है की बछड़ा पैदा होने के बाद पशु के दाना चारा खाने की क्षमता बहुत कम हो जाती है वह उतना नहीं खा पाता जितना दूध उत्पादन के लिए उसे खाना चाहिए (इस स्थिति को नेगेटिव एनर्जी बैलेंस कहते हैं), इस वजह से पशु अपने शरीर में मौजूद फैट को घुलाना शुरू कर देता है और यदि फैट पर्याप्त न हो तो मासपेशियों में मौजूद प्रोटीन को घुलाना शुरू कर देता है| जिससे पशु का वज़न तेज़ी से गिरने लगता है, यह वज़न दूध के रूप में बहार निकल जाता है| तो हमारी सबसे पहली कोशिश ये होनी चाहिए की ब्याने के बाद पशु भरपूर मात्रा में दूध उत्पादन के अनुसार अच्छी क्वालिटी का पोषक फीड ग्रहण करे|
पीली लाइन – पशु की कम फीडिंग के कारण उसका वज़न गिरता है और ब्याने के बाद लगभग ढाई महीने तक ये गिरता रहता है ऐसे में पशु औसतन 50 से 70 किलो तक वज़न को गिरा देता है, यह वोही वेट होता है जिसे पशु ने लेट लैकटेशन में हांसिल किया होता है| यदि पशु का वज़न ब्यात के समय 450 किलो था तो लगभग 15% वज़न कम हो जाता है| यदि पशु की कीमत 70000 हो तो वह लगभग 11000 रूपए का वज़न कम कर देता है| यह वज़न जितनी तेज़ी से गिरता है पशु का उत्पादन उतना ही ख़राब होता जाता है| वज़न का अधिक तेज़ी से गिरना इस बात का सबूत होता है की या तो पशु की फीडिंग ठीक नहीं है या वह फीड ग्रहण नहीं कर रहा| वक्त रहते दिक्कत का पता लगा कर हम पशु के उत्पादन और उसके स्वास्थ को संभाल सकते हैं| हम वज़न गिरने से रोक नहीं सकते परन्तु इसके गिरने की दर को कम ज़रूर कर सकते हैं| हमारा काम यह है की हम वज़न को अधिक न गिरने दें जिसके लिए उत्तम क्वालिटी का बैलेंस फीड और बिमारियों से बचाव ज़रूरी होता है|
वज़न कैसे मैनेज करें –
जैसे ही पशु पीक यील्ड से नीचे जाने लगता है तब से ही बॉडी वेट बढ़ना शुरू हो जाता है परन्तु यह वेट बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है की फीडिंग कैसी हो रही है| बॉडी वेट को सही से मेन्टेन रखने पर ही पशु दोबारा हीट में आता है और प्रेग्नेंट हो पाता है|
बॉडी वेट को लैक्टेशन के तीसरे फेज़ यानि लेट लैकटेशन लेट में बढ़ाया जाता है इसके लिए वैट एक्सपर्टस का दूध धारा प्रोडक्ट इस्तेमाल किया जा सकता है|
बछड़ा पैदा होने से पहले फीड इन्टेक का कम होना: प्रेग्नेसी के आखिरी दो महीनो में पशु के पेट में बछड़ा बहुत तेज़ी से बढ़ता है और वह रुमेन के ऊपर दबाव बनाने लगता है उस समय बढ़ते बछड़े की आवश्यकता अधिक होती है लेकिन पशु चारा खाना कम कर देता है| रुमेन के ऊपर दबाव पड़ने से उसका साइज़ छोटा हो जाता है और पोषण को अवशोषित करने वाले पैपिला भी अकार और संख्या में कम हो जाते हैं इस वजह से पशु की डाइट कम हो जाती है| यहाँ पशु के इन्टेक को बढ़ाना एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है जिसके असर गाय की डिलीवरी के बाद होने वाली परफॉरमेंस पर और बिमारियों पर पड़ता है, अच्छा पोषक दाना और चारा जिसमे प्रोटीन की मात्रा 18-20% तक हो, देते रहना चाहिए|
बढ़ते हुए बछड़े को अधिक से अधिक ग्लूकोस की आवश्यकता होती है, मनुष्यों के मुकाबले डेरी पशुओं में ब्लड ग्लूकोस मात्र एक तिहाई होता है क्यूंकि पशु की उर्जा आपूर्ति रुमेन में बनने वाले वोलेटाइल फैटी एसिड से हो जाती है, इसलिए जब भी दूध बनाने के लिए और बछड़े के लिए ग्लूकोस की डिमांड बढती है, और बहार से ग्लूकोस की आवश्यकता पूरी नहीं होती तो ग्लूकोस बनाने के लिए लीवर में बड़ी मात्रा में ग्लूकोनियोजेनेसिस की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसमे शरीर का फैट निकल कर आता है यह फैट (NEFA – Non Esterified Fatty Acid) नेफा के रूप में लीवर में पहुंचता है और फैटी लीवर की सम्भवना को अत्याधिक बढ़ा देता है| इसलिए पशु की प्रेगनेंसी के आखिरी के दिनों में प्रोटीन और एनर्जी की मात्रा अधिक रखनी पड़ती है जिससे पशु दूध के लिए तैयार रहे| जिन पशुओं में बछड़ा पैदा होते समय नेफा की मात्रा अधिक होती है उनमे बच्चा फसना, जेर का न निकलना, किटोसिस, मिल्क फीवर, थनेला आदि की दिक्कत बहुत आती हैं| पशुओं के खून में NEFA का लगातार आंकलन पशु स्वास्थ प्रबंधन में अहम् रोल रखता है जिससे सवस्थ पशु उत्पादन की नीव रखी जाती है|
जिस दिन बछड़ा पैदा होने वाला हो उससे अंदाज़न 21 दिन पहले सोडा, कैल्शियम, DCP आदि देना बंद कर दें| उस समय पशु को हड्डियों से आन्तरिक कैल्शियम निकालने की आवश्यकता होती है यदि बहार से कैटायन (कैल्शियम सोडियम पोटैशियम आदि) देते रहेंगे तो पशु अपना कैल्शियम मोबीलायिज़ नहीं कर पाता और हाइपोकैलसिमिया का शिकार हो जाता है|
हाइपोकैलसिमिया क्या होता है और इससे क्या नुकसान होता है
पशु के खून में कैल्शियम की कमी को हाइपोकैलसिमिया कहा जाता है| रेसेर्चों से पता लगता है की 80% से अधिक पशु ब्यात के समय हाइपोकैलसिमिया का शिकार होते हैं| हाइपोकैलसिमिया को गेट वे डिज़ीज़ या बिमारियों का द्वार भी कहा जाता है| कैल्शियम शरीर के सभी मेटाबोलिक कार्यो का हिस्सा होता है जैसे मांसपेशियों का काम करने में मदद, शरीर की नसें बिना कैल्शियम के काम नही कर पाती, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कैल्शियम की कमी से प्रभावित होती है| यदि कैल्शियम की कमी बहुत अधिक हो तो पशु मिल्क फीवर नमाक बीमारी से ग्रसित हो जाता है| यदि कैल्शियम की कमी अधिक न हो तो भी विभिन्न दिक्कतें आती हैं जैसे बच्चे का फसना, यूटेरस का बहार आ जाना, थनेला, जेर न निकलना, किटोसिस, भूक न लगना आदि| रैडॉसटिस्ट की वेटेरनरी मेडिसिन किताब और अन्य लेखों में भी ये देखने को मिलता है की जो पशु मिल्क फीवर से ग्रसित हो जाते हैं वे कभी पीक यील्ड पर नहीं आते और उनमे आगे भी इस बीमारी की सम्भावना बनी रहती है| जो बच्चे पैदा होते समय फंस जाते हैं (डिसटोकिया) उनकी जीवित रहने की दर बहुत कम हो जाती है|
हाइपोकैलसिमिया से बचाव में निम्न लिखित मैनेजमेंट काफी लाभकारी होता है और ऐसा करने से पशु की पीक यील्ड तो जल्दी आती ही है साथ में कुल उत्पादन में भी लगभग 30% तक की वृद्धि देखि जा सकती है|
पशु को ब्याने की तारिक के 21 दिन पहले से क्लोरोमेट देना शुरू करें
500 से 750ग्राम क्लोरोमेट और 100ग्राम नौसादर नमक खिलाये, चारे में बराबर मात्रा में मक्का का साईलेज भूसे में देते रहे| दाने में 2 से 3 किलो दलिया और 2 किलो सोयाबीन की खल देते रहे| पशु के दाने में LSP, DCP, सोडियम बेंटोनाइट, सोडा आदि कुछ न मिलाएं| प्रति पशु 25 ग्राम रुमेन बफर, 5 ग्राम विटामिन, 5 ग्राम मिनरल मिक्सचर और 10ग्राम दूध धारा चलने दें|
जिस दिन क्लोरोमेट इस्तेमाल करना शुरू करें उससे पहले पशु के पिशाब की pH का आंकलन कर लें, ये अमूमन 7 से अधिक होती है| क्लोरोमेट और नौसादर शुरू करने के दो दिन तीन बाद पशु के पिशाब की pH को नापिए यह pH 6.3 से 6.6 के करीब होनी चाहिए यदि यह इससे कम हो तो क्लोरोमेट और नौसादर को कुछ कम कर दें और यदि अधिक हो तो इन्हें बढ़ा दें| चित्र में दिखाए गए pH मीटर को ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है परन्तु इसे इस्तेमाल करने के लिए इसके साथ दी गयी यूजर मैन्युअल को अवश्य पढ़ें क्यूंकि उसमे इस मीटर को कैलिबरेट करने का तरीका समझाया गया होता है, कैलिबरेट होने के बाद ही यह सही रीडिंग देता है|
अबोमेसल डिस्प्लेसमेंट – जब पशु ब्याने वाला हो तब कुछ बाते अमल में लायी जाती हैं
पशु के गर्भाशय में बछड़ा एक पानी से भरी थैली में होता है जिसमे लगभग 60 लीटर तक पानी होता है ऐसे ही बछड़े का स्वंय का वज़न भी 40 किलो तक होता है, यह सब जैसे पहले बताया गया दूसरे अंगो पर दबाव बना कर पीछे कर देता है| जैसे ही भैंस बच्चे को जन्म देती है तो पेट में वो जगह अचानक से खाली हो जाती है और अन्य अंग उस जगह को भरने के लिए आगे आने लगते हैं इनमे सबसे बड़ा रुमेन होता है जो की सबसे अधिक जगह घेरता है यदि रुमेन में होने वाली गतिविधिया (मोटिलिटी) ठीक न हो तो ये एबोमेसम के ऊपर चढ़ जाता है और उसे दबा देता है जिसे अबोमेसल डिस्प्लेसमेंट कहते हैं जैसा की तस्वीर में दिख रहा है|
आम तौर पर पशु जो भी खाता है वो रुमेन से होता हुआ अबोमेसम में जाता है और फिर छोटी और बड़ी आंतो में और आखिर में गोबर के रूप में बहार निकल जाता है| यदि अबोमेसम किसी वजह से रुमेन के नीचे आकर दब जाये तो फीड का रास्ता बंद हो जायेगा और पशु खाना ग्रहण करना छोड़ देता है| ऐसे में आप लाख इलाज करा लें वो ठीक नहीं होता| बछड़ा पैदा होते समय जो पानी शरीर से निकल जाता है उसमे काफी मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट और ऊर्जा निकल जातें हैं| उन्हें रिप्लेस करना बहुत आवश्यक होता है क्यूंकि यदि ऐसा न करें तो पशु शारीरक रूप से निढाल हो जाता है भूक मर जाती है और ठीक से चारा ग्रहण नहीं करता| तो ब्यात के समय होने वाली इन दिक्कतों का एक ही हल होता है की पशु जल्दी से जल्दी भरपूर मात्रा में फीड लेने लगे|
इसके लिए हमें डिलीवरी के समय ही सावधानी बरतनी पड़ती है| निम्नलिखित मैनेजमेंट से हम पशु को ब्यात के समय स्वस्थ रख सकते हैं, उसका फीड इन्टेक बढ़ जाता है और वह जल्दी से जल्दी पीक यील्ड पकड लेता है अधिक समय तक उसपर बना रहता है|
जैसे ही चित्र में दिखाए गए बछड़े के पैर बहार दिखाई दें उस समय पशु को सब कट कैल्शियम लगा दें और साथ में कैल्सीगेन नामक प्रोडक्ट 20 लीटर गरम पानी (40 डिग्री C) में मिला कर घोल बना लें और फिर इसमें 20 लीटर ताज़ा पानी मिलाकर 40 लीटर कर लें अब पशु को पीने के लिए यही घोल दें, जब तक पशु यह न पी ले तब तक अतिरिक्त पानी न दें, आम तौर से पशु अपने आप ही यह घोल पी लेता है लेकिन यदि न पिए तो इसे ड्रेंच करा दें|
ऐसा करने से डिलीवरी जल्दी हो जाती है और 12 घंटे के अन्दर ही अधिकतर पशुओ में जेर भी गिर जाती है|
दूध का उत्पादन अधिक होने की वजह से थन फूल जाते हैं इसलिए दिन में 3 से 4 बार दूध निकालें|
पैदा होते ही बछड़े को आधे घंटे के अन्दर 1 लीटर या उससे अधिक दूध अवश्य पिला दें उसके बाद पूरे दिन में 3 से 4 लीटर दूध दें| इस पहले दूध को कोलोस्ट्रम भी कहा जाता है|
इसके बाद पशु को भरपूर मात्रा में पॉजिटिव DCAD वाला दाना देना शुरू कर दें, जिसमे लगभग 20% प्रोटीन हो और 2850 किलो कैलोरी मेटाबोलायीज़ेबल एनर्जी होनी चाहिए |
फीड फार्मूलेशन के लिए यहाँ क्लिक करें
दूसरे दिन से आयनिक कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए 50 से 70 ग्राम Metacureदें, लगभग शुरू के 15 दिन लगातार उसके बाद एक दिन छोड़ कर|
Vet Experts मिनरल मिक्सचर: 5 ग्राम प्रति पशु रोज़ाना देते रहे
VitADEN: 5 ग्राम प्रति पशु रोज़ाना दें
Rumen Buffer: अत्यधिक एनर्जी वाला दाना देने से पशु के पेट तेज़ाबियत होने लगती है जिसके लिए Rumen Buffer दिया जाता है, रोज़ाना 25 से 30 ग्राम रुमेन बफर देते रहे|
अधिक दूध उत्पादन, रूमेन को स्वस्थ रखने, फाइबर डाइजेस्टशन बढ़ाने के लिए, वज़न बढ़ाने के लिए दूध धारा का उपयोग करें 10 ग्राम प्रति पशु प्रति दिन, आम तौर पर सातवे दिन से असर दिखना शुरू हो जाता है|
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