बर्ड फ्लू का हव्वा ? जानिए विस्तार से
What is Bird Flu? बर्ड फ्लू का वायरस पूरी दुनिया में पोल्ट्री व्यवसाय के लिए गले की हड्डी बन गया है| यह वायरस अपने आप में अनोखा है क्योंकि यह ना दिखने वाली बीमारी से लेकर ऐसे घातक लक्षण दिखाने वाली बिमारी करता है जिसमें पक्षी की 100% मृत्यु निश्चित होती है| नुकसान ना पहुंचाने वाले वायरस और घातक वायरस के प्रोटीन में सिर्फ एक अमीनो एसिड का ही फर्क होता है इसलिए हमें न सिर्फ इस बात का पता लगाना चाहिए कि कोई भी बर्ड फ्लू का वायरस कितनी खतरनाक बीमारी कर रहा है बल्कि इस बात पर भी नजर करनी चाहिए कि कोई वायरस कितना घातक बनने की क्षमता रखता है|
यह इसलिए क्योंकि बर्ड फ्लू का वायरस अपने चेहरे बदलता रहता है इसके लिए अब तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी| बर्ड फ्लू का वायरस एक और बात में अनोखा है क्योंकि यह मुख्यत पालतू मुर्गियों को छोड़कर जंगली पक्षियों जैसे बत्तख जलमुर्गी आदि में भी मिलता है इस वजह से इसे पूरी तरह से नहीं मिटाया जा सकता और तो और इन जंगली पक्षियों में यह कोई लक्षण भी नहीं दिखाता| इसके विश्व व्यापक होने के कारण यह मनुष्य में भी बीमारी करने की क्षमता रखता है, हालाँकि आजतक इक्का दुक्का केस के अलावा मनुष्यों में कोई केस बर्ड फ्लू का नहीं मिलता परन्तु वैज्ञानिक इसे चिंता का विषय मानते हैं| इन्हीं सब कारणों के चलते बर्ड फ्लू का वायरस एक मुख्य परेशानी है जिसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है|
आखिर बर्ड फ्लू की वैक्सीन बनाना क्यों मुश्किल है ?
बर्ड फ्लू का वायरस वैज्ञानिक शब्दावली में इन्फ्लूएंजा वायरस के नाम से जाना जाता है जो कि RNA वायरस है यह तीन रूपों में मिलता है A, B, C हालांकि सिर्फ A वायरस जानवरों और पक्षियों में बीमारी करता है| इस वायरस में 8 तरह के जीन होते हैं जिन से अलग-अलग वायरल प्रोटीन बनते हैं इनमें Hemagglutinin (HA) और Neuraminidase (NA) सबसे महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि मुख्य रोग इन्हीं के द्वारा होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इन्हीं तत्वों के खिलाफ काम करती है| लगभग 16 तरह के Hemagglutinin (HA) (1-16) प्रोटीन होते हैं और 9 तरह के Neuraminidase (NA) (1-9) प्रोटीन होते हैं| इन्हीं प्रोटीनों के संयोजन के आधार पर वायरस का नाम रखा जाता है जैसे H5N1, H7N7| ऐसे संयोजन के आधार पर 144 अलग अलग किसम के वायरस तैयार हो सकते हैं इसलिए इनके प्रति Vaccine बनाना नामुमकिन सा लगता है|
LPAI and HPAI : पोल्ट्री में इन्फ्लुएंजा का संक्रमण मुख्यत मुर्गियों और टर्की में देखने को मिलता है जहां यह लक्षण वाली बीमारी को दर्शाता है और उत्पादन को घटाता है| लक्षणों की तीव्रता के आधार पर इस वायरस को दो भागों में बांटा गया है यदि यह कम तीव्रता वाली बीमारी पैदा करता है तो इसे Low Pathogenic Avian Influenza (LPAI) कहते हैं और यदि यह अधिक तीव्रता वाली घातक बीमारी पैदा करता है जिसमें मृत्यु दर बहुत बढ़ जाती है तो इसे Highly Pathogenic Avian Influenza (HPAI) virus कहते हैं| यह बीमारी काफी पुरानी है और इतिहास में इसे मुर्गियों की महामारी के रूप में जाना जाता है|
Why bird flu virus named with H and N letters? जब LPAI वायरस से संक्रमण होता है तो अमूमन कोई लक्षण नहीं दिखते या दिखते हैं तो सिर्फ सांस लेने के तंत्र को संक्रमित करते हैं परंतु ऐसे में यदि दूसरे बैक्टीरिया का संक्रमण हो जाए तो मृत्यु दर बहुत बढ़ जाती है| LPAI वायरस कई तरह के (HA) और (NA) प्रोटीन टाइप से मिलकर बनता है| HPAI वायरस ना मालूम कारणों से सिर्फ H5 और H7 तक ही सीमित रहता है और इसमें भी अधिकतर इनका संयोजन कम तीव्रता वाले वायरस के रूप में देखने को मिलता है|
Why bird flu virus become so dangerous? ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है की LPAI रूप बदल कर HPAI में परिवर्तित हो जाए| यह माना जाता है की H5 और H7 वाले LPAI वायरस ही पोल्ट्री पक्षियों में रूपांतरित होकर घातक और अति घातक HPAI वायरस बनते हैं और काफी लंबे अरसे तक पोल्ट्री पक्षियों की आबादी में घूमते रहते हैं| जैसा की हमने पहले बताया की इंफ्लुएंजा वायरसों का घर जंगली पक्षियों में होता है परंतु यह जंगली पक्षी किसी भी तरह के घातक HPAI को संरक्षित नहीं करते| आम तौर पर इन पक्षियों से LPAI वायरस निकलकर पोल्ट्री पक्षियों की आबादी में आते हैं और वहां रूपांतरित होते हैं| जैसे कि 1983 में पेंसिलवेनिया में H5 वायरस के आउट ब्रेक से पहले 6 महीने तक LPAI वायरस पोल्ट्री में घूमता रहा इसी तरह 1999 में इटली में हुए H7 के आउट ब्रेक में H7 LPAI वायरस HPAI में तब्दील हो गया|
Molecular mechanism of virus activity and disease: मॉलिक्यूलर लेवल पर LPAI और HPAI मे एक फर्क होता है जिसे मोटे तौर पर ऐसे समझा जा सकता है की इन्फ्लूएंजा वायरस को बीमारी पैदा करने के लिए अपने H प्रोटीन को HA1 और HA2 मे तोड़ना पड़ता है यदि ऐसा नहीं हुआ तो बीमारी नहीं होगी| यह H प्रोटीन पोल्ट्री की कोशिकाओं में मौजूद विभिन्न एंजाइमों से टूटता है| तो जिस इंफ्लुएंजा के वायरस H प्रोटीन में इन एनज़ाईम से टूटने की क्षमता होती है वह HPAI बन जाता है| यह एंजाइम मुख्यत सांस लेने के तंत्र की कोशिकाओं में मिलते हैं इसलिए सबसे पहले लक्षण जुकाम के दिखते हैं| हिंदी में वैज्ञानिक शब्दावली की कमी के कारण इस वायरस और बीमारी के और रोचक तथ्यो के ऊपर प्रकाश डालना मुश्किल है|
इन्फ्लूएंजा वायरस की खासियत यह होती है यह अपने चेहरे बदलता है इसलिए किसी एक पशु या पक्षी में विचरण करने वाला वायरस दूसरे पशु या पक्षी में बहुत मुश्किल से जाता है परंतु जब जाता है तो विनाश करता है| इन्फ्लुएंजा का वायरस किसी में भी हो पर इसका स्रोत जंगली पक्षी ही होते हैं जिन से निकलकर यह पालतू मुर्गियों मैं आता है और वहां से अन्य पशुओं में| एक्सपर्ट वैज्ञानिक यह मानते हैं कि मनुष्य में होने वाले घातक स्वाइन फ्लू वायरस जंगली पक्षियों से निकलकर पालतू मुर्गियों में आए और फिर सूअर में पहुंचे जहां से यह मनुष्य की ओर आए| ऐसा वहां हुआ जहां पर पालतु मुर्गियां और सूअर साथ में पाले जाते थे| सूअर को इन्फ्लूएंजा वायरस के लिए मिक्सिंग वेसल भी कहा जाता है| परंतु एक बार मनुष्य में आ जाने के बाद सूअर का रोल खत्म हो जाता है और यह पूर्ण रूप से मनुष्य का वायरस बन जाता है| अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि क्यों बर्ड फ्लू वायरस के आउट ब्रेक को इतना महत्व दिया जाता है|
Clinical signs and symptoms of bird flu virus in Chickens? बर्ड फ्लू वायरस के लक्षणयह लक्षण विचित्र रूप से अलग अलग मुर्गियों के फ्लॉक में अलग अलग हो सकते हैं| यह लक्षण वायरस के प्रकार, मुर्गी की रोग प्रतिरोधक क्षमता, मुर्गी की आयु और दूसरे पर्यावरण के कारकों पर निर्भर करते हैं|LPAI वायरस से ग्रसित मुर्गियों में केवल सांस लेने के तंत्र और पेट की बीमारी के लक्षण ही दिखते हैं| इसमें मुख्य प्रभाव साइनस, ट्रेकिआ, फेफड़े, वायु कोष (AIR SACS), और आंतो में देखने को मिलते हैं| लेयर और ब्रीडर मुर्गियों में बिना किसी लक्षण के अंडों का उत्पादन व्यापक रूप से गिर जाता है|
HPAI वायरस द्वारा ग्रसित मुर्गियां अक्सर कोई लक्षण दिखाने से पहले ही मर जाती हैं परंतु कुछ अध्ययनों में इन मुर्गियों में फेफड़ों में पानी भर जाता है जिस से सांस न ले पाने के कारण मुर्गियों की मृत्यु होती है यही कारण होता है जिस वायरस के प्रकोप से मुर्गियां नीली पड़ जाती हैं| ऐसे हालात में ब्लड प्रेशर बढ़ने से मुर्गी की कलगी में जख्म दिखाई देते हैं और साइनस और आंखें सूज जाते हैं| अन्य अंदरूनी अंगों में भी व्यापक रूप से घाव मौजूद होते हैं जैसा की चित्रों में दर्शाया गया है|
Diagnosis: इस बीमारी का पता लैब में वायरस को आइसोलेट करके किया जाता है| बाहरी लक्षण से केवल बीमारी की तीव्रता देखी जाती है| जब मुर्गियां मर जाती हैं तो उन्हें लैब में लाया जाता है बाहरी लक्षण देखने के बाद उन मुर्गियों से वायरस निकालने की प्रक्रिया शुरू होती है जोकि मुर्गियों के EMBRYONATED अंडों में की जाती है| इस से वायरस निकाल लिया जाता है और विभिन्न मौलीक्यूलर टेस्ट करके उसका पता लगाया जाता है| इस वायरस को स्वस्थ मुर्गियों में डालकर देखा जाता है यदि 75% से अधिक मुर्गियां 10 दिन में मर जाती हैं तो इस वायरस को HPAI वायरस माना जाता है| इसके बाद इसकी सब टाइपिंग शुरू होती है जिसमें इसके H और N प्रोटीन का पता लगाया जाता है और फिर इसका नाम निर्धारित होता है|
Treatment and Control: उपचार और नियंत्रण –
इस बीमारी में उपचार के बहुत ज्यादा साधन मौजूद नहीं है और ना ही कोई वैक्सीन अभी तक बन पाई है| क्योंकि यह समस्या अधिकतर साउथ एशियन देशों की है इसलिए टीकाकरण पर कोई खास काम नहीं हो रहा| परंतु विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मानव स्वास्थ्य संस्थाएं इसमें कार्यरत हो रही है|
आमतौर पर इसमें लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है आउट ब्रेक के दौरान इम्यून बूस्टर और सेकेंडरी बैक्टीरियल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक दिए जाते हैं|