मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि लगभग सभी भारतीय वैज्ञानिक इस विषय पर एकमत हैं। देश के सबसे बड़े पशु अनुवांशिक शिक्षण संस्थान NBAGR जो कि ICAR द्वारा करनाल में स्थापित किया गया है वह इस विषय में सन 2009 से कार्यरत है उसी संस्थान की पहली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारतीय गायों में A2 की फ्रीक्वेंसी 98 प्रतिशत तक है और कुछ ब्रीड्स में यह सौ प्रतिशत भी और सभी भैंसे पूर्ण रूप से A2 दूध देती हैं।
इस तरह के सर्वेक्षणों में सबसे बड़ी दिक्कत इनके विवेचन में आती है इंडस्ट्री, मीडिया और वैज्ञानिक इसे अपने हिसाब से मॉडिफाई कर लेते हैं और गलत नॉलेज मार्केट में आ जाती है। इसके विपरीत चावल या गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स दूध से कहीं अधिक होता है पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता इस सब में एक्सपर्ट्स की बात भी कोई नहीं सुनता।
साइंटिफिकली कॉज़ल या रिस्क फॅक्टर को डिज़ीज़ के साथ जोड़ कर देखने का एक सेट क्राइटीरिया होता है जिस मिल्स कॅनन्स भी कहते हैं इसमे (A) Dose Response Effect (B) Biological Explanation With Direct Evidence मुख्यत देखा जाता है
अब जैसे फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में औसत A1 बीटा केसिन की सेवन 0.3 ग्राम प्रतिदिन की है जबकि उन जगहो में दिल की बीमारियो से होने वाली मौतो में बड़ा अंतर है फ्रॅन्स में 88% और ऑस्ट्रेलिया में 33%, और तो और अमेरिका और युरोप में पिछले दशक से अब तक A1 बीटा केसिन के सेवन में कोई बदलाव नही आया जबकि हार्ट डिसीज़ से होने वाली मौते बहुत कम हो गयी हैं
डाइयबिटीज़ मेलाइटस टाइप 1
डाइयबिटीज़ जैसी बीमारिया काफ़ी जटिल होती हैं और इनकी कोई एक वजह नही होती ये कहा जाता है की जिन बच्चो को इन्फेंट फ़ॉर्मूला (जैसे सेरेलेक) दिया जाता है उनमे डाइयबिटीज़ की सम्भावना बढ़ जाती हैं, जबकि ज़्यादातर इन्फेंट फॉर्मुलास में वेह प्रोटीन इस्तेमाल होता है और केसिन की बहुत कम मात्रा होती है, तो इसका कोई भी ठोस प्रमाण अभी तक नही मिला है
बाइयोलॉजिकल एक्सप्लनेशन ऑफ BCM (बीटा कसोमोर्फिन)
बीटा कसोमोर्फिन जो बीटा कासीन A1 के टूटने से बनता है, उसके लिए जो भी रिपोर्ट्स हैं वो लैब में टेस्ट ट्यूब्स या पेट्री डिश में किए गये अध्यनो की ही हैं.
बीटा कसोमोर्फिन को हार्ट, पॅनक्रियास या दिमाग पर अपना बाइयोलॉजिकल असर दिखाने के लिए आंतो में रिलीज़ होकर ब्लड में अवशोषित होना पड़ेगा और उन अंगो तक पहुँचना होगा जहाँ ये बीमारी पैदा करने की सम्भावना रखता हो| अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नही है की A1 दूध पीने के बाद मनुष्यों में बीटा कसोमोर्फिन रिलीस होता हो या वो आंत क्रॉस करके ब्लड में पहुँचता हो और दूसरी बात ये की मनुष्यों की आंतो में 3 एमिनो आसिड से बने पेपटाइड ही अवशोषित हो पाते हैं जबकि बीटा कसोमोर्फिन पेपटाइड 7 एमिनो एसिड जितना लम्बा है|
एक और बात बीटा कसोमोर्फिन सिर्फ़ जब ही अब्ज़ॉर्ब हो सकता जब या तो लीकी इंटेसटाइन की बीमारी हो या बिल्कुल नवजात शिशु हो|
वहीं दूसरी तरफ इस बात के भी सबूत हैं की बीटा कसोमोर्फिन सेहत के लिए लाभदायक होता है, इससे जुडी हुई कई रिसर्च प्रकाशित हो चुकी है, जिनमे ये है की बीटा कसोमोर्फिन इंटेसटाइन में म्युसिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिसमें रक्षात्मक गुण होते हैं, तो इस तरह बीटा कसोमोर्फिन स्वास्थ वर्धक भी हैं
लैब एनिमल्स
लैब एनिमल्स में बीटा कसोमोर्फिन और दिल की बीमारियों का असोसियेशन सिर्फ़ एक रिपोर्ट में मिला है उसमे खरगोश पर एक्सपेरिमेंट किया गया था जो मानव डिज़ीज़ का मॉडेल ही नही माना जाता|
वैज्ञानिको का कहना है की अभी तक कोई भी ऐसा विश्वसनीय सबूत नही मिला है जो ये इंडिकेट करता हो की A1 मिल्क पीने से कोई दिल की बीमारी या डाइयबिटीज़ होते हो
A1 मिल्क इन इंडियन कॉंटेक्स्ट
हमे अपनी भारतीय गाये की नसले बचानी चाहिए पर ऐसा नही है की बहारी ब्रीड्स को बिल्कुल ख़त्म कर दें
और इस A1 मिल्क और क्रॉनिक डिज़ीज़ के असोसियेशन की हाइपोथीसिस को पश्चिमी देशो में बनाया गया और सर्वे किया गया है उसे इंडिया में देखना ठीक नही है
एक महत्वपूर्ण बात यदि पश्चिमी देशो की धारणा के हिसाब से देखे तो यहाँ 55% दूध भैंसो से मिलता है बाकी 40% गये से और 4 से 5% बकरी से, तो टोटल प्रोटीन का बीटा केसीन अगर 45% माने उनमे से 25% बीटा केसिन A1 का उस से मिलता है, तो इसका मतलब प्रति व्यक्ति आवरेज 0.24ग्राम प्रतिदिन का सेवन है जो की लगभग 10 गुना कम है सर्वे के हिसाब से.