बरबरी बकरी के बारे में जानकारी (Information on Barbari Goat)
बरबरी बकरी की उत्पत्ति और विकास उत्तर पश्चिमी भारत के सूखे और सम सूखे (Arid & Semi Arid) भागो में हुई है | मुख्य रूप से एटाह, एटावा, हाथरस, मथुरा, आगरा, अलीगड़ ज़िलो में यह नस्ल पाई जाती है|18वे पशु गणना (2007) के मुताबिक बरबरी बकरियों की संख्या लगभग 31.5 लाख आँकी गयी है| जिनमे सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरयाणा और झारखंड में मिली हैं| बरबरी एक दोहरे लाभ वाली बकरी है मतलब इसे दूध और माँस दोनो के लिए पाला जाता है और इसे आसानी से चाराई पर बिना किसी अतिरिक्त दाने के रखा जा सकता है| फार्म के लिए भी यह नस्ल सबसे उपयुक्त है|
दुधारू होने के साथ साथ इसकी बच्चे देने की क्षमता भी काफ़ी अच्छी होती है यह 2 और कभी कभी 3 बच्चे तक दे देती है| बरबरी छोटी नस्ल की बकरी है और स्टॉल फीडिंग के लिए बहुत अधिक उपयुक्त होती है, इसलिए यह शहरो में आम तौर से पाई जाती है|
बरबरी नस्ल की बकरियां सफेद रंग की होती हैं जिस पर भूरे/कत्थयी रंग के धब्बे होते है| शुद्ध नस्ल में खजूर की पत्ती के आकार के कान होते हैं| वयस्क नर 40Kg और वयस्क मादा 25Kg तक की होती है और रोज़ाना 0.75 – 1.0 Kg दूध दे देती है| 150 दिन की अवस्था में बर्बरी 130 से 200 लीटर तक दूध दे देती है जिसमे 5% तक वसा होती है| ये नस्ल 12 से 15 महीने में 2 बार बच्चे दे देती है| जिसमे दो बच्चे होने की संभावना 65 प्रतिशत होती है|