बकरी के दूध के पोष्टिक गुण
Nutraceutical Value of Goat Milk
बरसात में फैलने वाले बुखार में बकरी के दूध कि डिमांड अचानक से बढ़ जाती है और यह दूध महंगा हो जाता है. डेंगू या चिकनगुनिया में इसे ज्यादा प्रसिध्ही मिलती है. यहाँ ये सवाल उठता है कि क्या वाकई बकरी के दूध में ऐसे तत्व होते हैं जिनसे वायरल बुखार में फायदा होता हो.
कोई भी पोषक पर्दार्थ या दवाई जो हम लेते हैं वो बीमारी में दो तरह से काम करती है| पहली वो सीधे बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु/कीटाणु को मारती है या फिर हमारे शारीर कि रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को बढाती है. जो दवाइयां सीधे बीमारी करने वाले माइक्रोब्स को ख़तम भी करती हैं वो भी उस कंडीशन में बेकार हो जाती हैं जब रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो. इसलिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना आज मेडिकल साइंस में बीमारी को सही करने का महत्वपूर्ण सिधांत बन गया है.
इन्हीं दो पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हम बकरी के दूध की पौष्टिकता का आंकलन करेंगे और साथ ही साथ यह भी देखेंगे कि वह गाय के दूध से किस तरह बेहतर है।
बकरी उन सब से पहले पशुओं में से है जिन्हें पालतू बनाया गया था, इंसान और बकरी का रिश्ता लगभग 10,000 साल पुराना है। बकरी कठोर परिस्थितियों में रहने के लिए जानी जाती है और यह दुनिया के लगभग सभी महाद्वीपों में मिलती है।
1980 से 1999 के बीच विश्व में बकरी का उत्पादन लगभग 55% बढा और बकरी के दूध का उत्पादन लगभग 58% बढ़ा। बकरी के दूध को अमूमन गाय के दूध से कंपेयर किया जाता है| गाय क्योंकि ज्यादा दूध देती है इसलिए गाय के दूध का उत्पादन बकरी के दूध से सस्ता होता है और इसीलिए अधिक लोकप्रिय है| व्यवसायिक तौर पर बकरी के दूध का उत्पादन महंगा होता है क्योंकी बकरी कम दूध देती है और उसमें मौसमी बदलाव भी आते हैं। इसीलिए बकरी के दूध और उससे बने उत्पादों की डेरी मार्केट में एक अलग पहचान है। इसके अलावा बकरी का दूध गाय के दूध से अन्य विशेषताओं में भी अलग होता है जैसे बकरी का दूध पचने में आसान होता है, एल्कलाइन होता है और उपचारात्मक वैल्यू भी अधिक होती है। बकरी के दूध में प्रोटीन फैट कार्बोहाइड्रेट विटामिन और मिनरल होते हैं।
बकरी के दूध में विभिन्न प्रोटीन होते हैं जो आंतो में पचकर एमिनो एसिड प्रदान करते हैं परन्तु कुछ प्रोटीन टूटते नहीं और ज्यों के त्यों रहते हैं, ये प्रोटीन फैट के ग्लोब्युल्स को चारो तरफ से घेरकर उनसे चिपक जाते हैं जिससे फैट दूध में घुलनशील हो जाता है और तैर कर गाय के दूध की तरह ऊपर नहीं आता | इस संरचना को मिसेल कहते हैं. इसके अलावा बकरी के दूध के कुछ प्रोटीन कई और पोषक तत्वों (जैसे विटामिन, मिनरल आदि) को अपने साथ जोड़कर खून में अवशोषित होने में मदद करते हैं.
कुछ अन्य प्रोटीन टूटकर छोटे प्रोटीन बना लेते हैं जिन्हें पेपटाइड कहा जाता है| क्यूंकि इन तत्वों का शारीर कि कार्य प्रणाली में रोल होता है इसलिए इन्हें बायो–एक्टिव पेपटाइड कहते हैं. इनके उद्धरण हैं जैसे ACE Inhibitor Peptide (ये ब्लड प्रेशर को कम करता है), immune modulating peptide (ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है)
वैसे तो विश्व में कई तरह के दुधारू जानवरों पर रिव्यु और लेख लिखे जा चुके हैं परन्तु बकरी के दूध के ऊपर हिंदी में एक वैज्ञानिक लेख कि कमी थी. इसलिए हमने कुछ रिसर्च आर्टिकल्स और रिव्यु पेपर्स द्वारा जानकारी ली और इस संलेख को लिखा है.
बकरी के दूध के पोष्टिक तत्वों का अवलोकन
लिपिड (वसा): फैट को लिपिड भी कहा जाता है. यह दूध का एक अहम् हिस्सा होता होता है क्यूंकि इससे स्वाद उत्पन्न होता है| लिपिड का 97% भाग ट्राई एसाइल ग्लिसरॉल (TAG) नामक पदार्थ का होता है| बाकी 3% में अन्य लिपिड पदार्थ जैसे DAG, MAG, cholesterol और फैटी एसिड होते हैं.
बकरी के दूध में फैट छोटे छोटे गोलों के रूप में होता है जिन्हें फैट ग्लोब्युल्स कहते हैं| बकरी में यह ग्लोब्युल्स गाय के दूध से 7 गुना छोटे होते हैं जिससे इन्हें पचाना बहुत आसान होता है |
किसी भी दूध के फैट में 3 तरह के फैटी एसिड होते हैं एक लंबी चेन वाले फैटी एसिड, मध्यम चेन वाले फैटी एसिड और छोटी चैन वाले फैटी एसिड। बकरी के दूध में अधिकता मध्यम और छोटी चेन वाले फैटी एसिड्स की होती है। जैसे कैप्रिक एसिड, कैप्रोइक एसिड, कैप्र्य्लिक एसिड, लोरिक एसिड आदि। इन फैटी एसिड्स में में 4 से 18 कार्बन अणु होते हैं। बकरी के दूध में पॉली अन्सेचूरेटेड फैटी एसिड्स भी होते हैं और साथ ही साथ कन्जूगेटेड लिनोलेइक एसिड भी पाया जाता है। छोटे और मध्यम फैटी एसिड कई बीमारियों को ठीक करने के काम आते हैं, यह मुख्य रूप से रोग करने वाले जीवाणु का नाश करते हैं | कन्जूगेटीड लिनोलेनिक एसिड (CLA) एक बायो एक्टिव लिपिड की तरह काम करता है जिसका रोग प्रतिरोधक क्षमता पर अनुकूल प्रभाव होता है। CLA बकरी के दूध में मिलने वाला सबसे महत्वपूर्ण बायो एक्टिव तत्व होता है और यह प्रतिरोधक क्षमता के अन्य तत्व जैसे साइटोकाइनस, इकोसेनाइट्स तथा प्रोस्टाग्लैंडिन आदि को भी सुचारु रुप से कार्य करने सहायता करता है। मनुष्य में आईजीई (IgE) एंटीबॉडी से होने वाली एलर्जी को भी कम करता है और साथ ही साथ आंतों में होने वाली सूजन (irritable bowel disease inflammation) को भी कम करने में मदद करता है|
बकरी के दूध में फैट का एक बहुत बड़ा हिस्सा मीडियम चेन ट्राइग्लिसराइड्स (MCT) का बना होता है जो आहार में मौजूद विभिन्न पोषक तत्वों को हमारे खून में अवशोषित करने में मदद करता है। मुख्यता कैप्रोइक और काप्रय्लिक एसिड MCT का हिस्सा होते हैं और इनमें जीवाणु और कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता भी होती है। इसी वजह से MCT ग्राम नेगेटिव और ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया के संक्रमण से बचाव भी करता है। कुछ अन्य लिपिड गंग्लियोसाइड्स और सरेब्रोसाइड्स भी बकरी में पाए जाते हैं। इनका बच्चों के दिमागी विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि यह लिपिड दिमाग के टिश्यूज बनाने में मदद करते हैं।
बकरी के दूध मे मिलने वाले प्रोटीन
बकरी के दूध में मुख्यतः दो प्रोटीन मिलते हैं एक केसीन और दूसरा वेह। केसीन कुल प्रोटीन का लगभग 80% होता है जो 4 रूपों में मिलता है αs1, αs2, β and κ-casein। वेह प्रोटीन भी दो रूपों में मिलता है अल्फा लेक्ट – एल्बुमिन (α- lactalbumin) और बीटा लेक्ट – ग्लोब्युलिन (β-lactglobulin) |
गाय के दूध के मुकाबले बकरी के दूध में अल्फा एस केसीन (αs) की मात्रा कम होती है जबकि बीटा केसिन (β-casein) अधिक होता है। गाय के दूध में मुख्य प्रोटीन αs1 केसिन होता है जबकि बकरी के दूध में बीटा केसीन सबसे अधिक होता है जो A2 टाइप का होता है।
यह देखा गया है कि जिस दूध में αs1 केसीन होता है उसे पचने में अधिक समय लगता है क्योंकि αs1 केसीन आमाशय में पूरी तरह डाइजेस्ट नहीं हो पाता। इस हिस्से को पूरी तरह पचने के लिए छोटी आंत के निचले हिस्से तक आना पड़ता है जिसे डूडीनम कहते हैं यहाँ αs1 को पचाते हैं। बकरी के दूध का केसीन गाय के दूध से बिल्कुल अलग होता है इसमें बीटा केसिन कि मात्रा सबसे अधिक होती है जो कि आसानी से ऊपरी आंत में ही पच जाता है।
टोरिन: टोरिन बकरी के दूध में मिलने वाला सबसे अहम अमीनो एसिड होता है जिस की मात्रा बकरी के दूध में गाय के दूध से 40 गुना अधिक होती है। टेरिन मनुष्य के शरीर में विभिन्न कार्य प्रणालियों एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यह ग्रोथ, दिमागी विकास, बाईल साल्ट्स के निर्माण और कोशिकाओं की झिल्ली में कैल्शियम की आवाजाही को भी नियंत्रित करता है| यह क्रिया हृदय की कोशिकाओं के लिए सबसे अधिक आवश्यक होती है।
इससे ओसमोरेगुलेशन नामक क्रिया संपन्न होती है और शरीर में पानी का संचालन और नियंत्रण बना रहता है| इसकी की कमी से मनुष्य में कार्डियोमायोपैथी, एपिलेप्सी और ग्रोथ की कमी और अन्य बीमारियां देखने को मिलती हैं। बकरी के दूध का प्रोटीन हर तरह से मुकम्मल होता है और यह गाय के दूध की तरह बलगम पैदा नहीं करता।
बीटा लेक्ट – ग्लोब्युलिन (β-lactglobulin) प्रोटीन खून में रेटिनॉल नामक पदार्थ को कैरी करता है जोकि नजर को तेज करने के काम में आता है। साथ ही साथ इसमें कैंसर प्रतिरोधक क्षमता कीटाणु और जीवाणु नाशी योग्यता भी होती है। यह शरीर की शिराओं में खून के थक्के जमने कभी बचाव करता है।
दूसरा प्रोटीन अल्फा लेक्ट – एल्बुमिन (α- lactalbumin) के गहन अध्ययन से यह बात सामने आई है कि वह ब्लैडर और स्किन कैंसर के मरीजों में ट्यूमर कोशिकाओं को मारने में सफल रहा है। इसी प्रोटीन को जब एक अन्य लिपिड ओलिक एसिड के साथ काम्प्लेक्स बनाकर खून में इंजेक्ट किया गया तो इसने आश्चर्यजनक रूप से ब्रेस्ट कैंसर की सेल्स को खत्म कर दिया। बकरियों से प्राप्त बीटा केसिन से बने कुछ पेप्टाइड्स ब्लड प्रेशर को कम करने में अत्यंत सार्थक सिद्ध हुए हैं इनमें सबसे महत्वपूर्ण ऐस इन्हीबिटरी पेप्टाइड (ACE inhibitory peptide) मिला है, यह पेप्टाइड angiotensin converting enzyme रोकता है जिससे ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। कुछ और एंजाइम बकरी के दूध के केसीन (αs) को तोड़कर कुछ ऐसे पेप्टाइड्स बना देते हैं जिन के अंदर अत्यंत प्रभावशाली एंटीआक्सीडेंट कैपेसिटी होती है यह मुख्य रूप से अल्फा केसीन पेप्टाइड में देखी गई है। इन पेप्टाइडस में ग्राम नेगटिव बैक्टीरिया को मारने कि क्षमता भी होती है.
बकरी के दूध में मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट
लैक्टोज़ एक मुख्य कार्बोहाइड्रेट है जो कि बकरी के दूध में मिलता है और यह गाय के दूध के मुकाबले बकरी के दूध में कम होता है। यह अन्य तत्वों की तरह लीवर में ना बन कर यह बकरी के थनों में बनता है जहां पर अल्फा लेक्ट – एल्बुमिन (α- lactalbumin) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लैक्टोज़ एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जो खून में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस तथा विटामिन डी के अवशोषण को बढ़ाता है। एक और महत्वपूर्ण बात जो कि लैक्टोज़ से जुड़ी हुई है वह यह कि थानों में लैक्टोज़ का उत्पादन बकरी में दूध की मात्रा को निर्धारित करता है। यह लैक्टोज़ ग्लूकोज और गलक्टोज़ के जुड़ने से बनता है।
लैक्टोज़ से बना एक दूसरा कार्बोहाइड्रेट जिसे लैक्टोज़ डेराइवड ओलिगोसेकराइडस (LDO) कहते हैं। यह ओलिगोसेकराइडस मानव पोषण में बहुत उपयोगी होते हैं क्योंकि इनमें प्री बायोटिक और संक्रमण विरोधी (anti-infective) गुण होते हैं। कुछ अध्ययनों में यह ओलिगोसेकराइडस (LDO) इंफेक्शन और इन्फ्लामेशन की वजह से होने वाले पेट के दर्द में बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं इसलिए इसका इस्तेमाल कमजोर पाचन तंत्र को ठीक करने के लिए किया जा रहा है। बकरी के दूध में इन ओलिगोसेकराइडस (LDO) की मात्रा मनुष्य के दूध से कम होती है परंतु अन्य गाय–भैंसों और भेड़ के दूध से अधिक होती है। और साथ ही साथ बकरी के दूध में मिलने वाले ओलिगोसेकराइडस (LDO) की संरचना मनुष्य के दूध में मिलने वाले ओलिगोसेकराइडस (LDO) के समान ही होती है।
इसलिए बकरी का दूध मानव शिशु पोषण में बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
यदि हम इस तथ्य की भीतर से जांच करें तो हम जानेंगे कि इन्फ्लामेशन से लड़ने का तंत्र LDO द्वारा प्रोत्साहित किये गए ब्यूटाईरेट नामक तत्व से कार्यरत होता है| साथ ही साथ LDO इन्फ्लामेशन करने वाले हानिकारक बैक्टीरिया को आंतो पर नहीं चिपकने देता और उपयोगी बैक्टीरिया जैसे लेक्टोबेसिलस और बाईफ़ीडो बैक्टीरिया की उतपत्ति को बढ़ता है.
स्पेन में हुए एक और अध्यन के अनुसार जब बकरी के दूध के LDO को IBD (Inflammatory Bowel Disease) और कोलाइटिस से ग्रसित चूहों को दिया गया तो इन्फ्लामेशन में भारी कमी देखने को मिली| इन चूहों कि आंतो का जब परिक्षण किया गया तो कोलाइटिस के कारण होने वाले ज़ख्मो में काफी कमी देखी गयी|
इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि बकरी के दूध में मौजूद लैक्टोज़ डेराइवड ओलिगोसेकराइडस (LDO) इन्फेक्शन द्वारा होने वाली इन्फ्लामेशन रोधी गुण होते हैं और यह क्षतिग्रस्त आंत को स्वस्थ करने में मदद करता है| इसलिए कहा जाता है कि कमज़ोर पाचन वाले व्यक्तियों और खासकर बच्चो और बूढों को नियमित रूप से बकरी का दूध देना चाहिए|
विटामिन: बकरी के दूध में गाय के दूध से अधिक तथा मनुष्य के दूध के बराबर विटामिन A होता है. बकरी समस्त बीटा कैरोटीन को विटामिन A में बदल देती है इसलिए बकरी का दूध गाय के दूध से अधिक सफ़ेद होता है. विटामिन A शिशु कि दोनों प्रकार कि रोग प्रतिरोधक क्षमताओं को बढाता है|
एक वह प्रतिरोधक क्षमता जो बच्चे में खुद होती है और एक वह प्रतिरोधक क्षमता जो बच्चे को मां से प्राप्त होती है विटामिन ए की कमी से प्रतिरोधक तंत्र की कोशिकाएं सुचारु रुप से काम नहीं कर पाती। विटामिन ए के साथ विटामिन डी हड्डियों के अलावा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक होता है। विटामिन सी भी बकरी के दूध में प्रचुर मात्रा में मिलता है और इस विटामिन के अंदर एंटीऑक्सीडेंट और एंटीवायरल गुण होते हैं जो जो बच्चों की शारीरिक मजबूती को बढ़ाने में मदद करते हैं।
बकरी के दूध में मिलने वाले खनिज
बकरी के दूध में पोटैशियम कैल्शियम क्लोराइड फास्फोरस सेलेनियम जिंक और कॉपर गाय के दूध से अधिक मात्रा में होते हैं।
पोटेशियम शरीर के एसिड बेस संतुलन को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी होता है साथ मे ये मांसपेशी दिमाग की नसें किडनियों के कार्य में भी मदद करता है। बकरी के दूध में क्लोराइड की मात्रा और पशुओं के दूध के मुकाबले कहीं अधिक होती है जिसकी वजह से इसका स्वाद भी थोड़ा खारा हो जाता है। क्लोराइड शरीर में तरल संतुलन (fluid balance), खून की पीएच (pH) और ऑसमोटिक प्रेशर को संतुलित रखता है। यह लीवर की कार्यप्रणाली को भी दुरुस्त रखता है और साथ ही साथ आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का उत्पादन भी करता है।
कैल्शियम हड्डियों के लिए लाभकारी होता है और मांसपेशी संकुचन खासतौर से दिल की मांसपेशियों की ताकत के लिए एक अहम तत्व होता है। सेलेनियम घातक फ्री रेडिकलस से कोशिकाओं का बचाव करता है। यह कोशिकाएं मुख्य रूप से खून में मिलने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं जिनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह देखा गया है कि डेंगू के मरीजों में फ्री रेडिकल्स का उत्पादन अत्याधिक बढ़ जाता है जिससे शरीर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस नामक अवस्था में आ जाता है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बिल्कुल समाप्ति की कगार पर पहुंच जाती है। ऐसे में सेलेनियम एंटीआक्सीडेंट की तरह काम करता है और शरीर पर फ्री रेडिकल्स के प्रहार को कम करने में मदद करता है। यह काम सेलेनियम ग्लूटाथिओन परओक्सिडेज़ नामक एंजाइम्स के साथ जुड़कर करता है। इसीलिए बकरी का दूध डेंगू के बुखार में लाभकारी होता है। यही नहीं बकरी के दूध में मौजूद LDO और मीडियम चेन फैटी एसिड भी डेंगू के वायरस को निष्क्रिय करते हैं| साथ ही साथ टोरीन ब्लड प्लेटलेट्स का महत्वपूर्ण तत्व होता है, खून के मुकाबले टोरीन की मात्रा प्लेटलेट्स में 400 तक अधिक होती है|
एंटीबायोटिक के प्रति उत्पन्नं होते प्रतिरोध की वजह से पशु और पौधों द्वारा निर्मित पोषक तत्वों के ऊपर रिसर्च काफी बढ़ गयी है| इसमें सबसे पहले लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया से उत्पादित तत्व प्रिबोटिक और प्रोबिओटिक आते है जो आंतो को स्वस्थ रखने के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं|
दूध के कुछ अन्य प्रोटीन भी टूट कर छोटे संघटक बनाते हैं जिन्हें एंटीमाइक्रोबियल पेप्टाइड कहते हैं| लेक्टोफेरिन इसका एक उदहारण है| इस तत्व में कैंसर से लड़ने की क्षमता भी होती है और इन्फ्लामेशन रोधी भी होता है|
बाईफ़ीडो बैक्टीरियम: एक नए हुए अध्यन में ये ज्ञात हुआ है बाईफ़ीडो बैक्टीरियम गाय के दूध की अपेक्षा बकरी के दूध में अच्छा पनपता है | इसीलिए बकरी के दूध के pH अधिक तेज़ी से गिरती है और वेह प्रोटीन अधिक होने के कारण बाईफ़ीडो बैक्टीरियम भी अधिक मिलता है| लेक्टिक एसिड बैक्टीरिया बकरी के दूध में अधिक सक्रीय होते हैं| यह बैक्टीरिया शिशुओ की आंतो में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु से लड़ता है और शिशु को पेट की परेशानियों से मुक्त रखता है| यह शिशु स्वास्थ के लिए इतना ज़रूरी होता है की माँ के दूध में इस बैक्टीरिया की उत्पत्ति को बढ़ाने के लिए अलग से एक तत्व होता है जिसे बाई फ़ीडो फैक्टर कहते हैं| यह किसी और प्राणी के दूध में नहीं मिलता, मनुष्य के दूध के अलावा सिर्फ बकरी के दूध में बाईफ़ीडो बैक्टीरियम को पोषण प्रदान करने की क्षमता होती है| यह एक और कारण है जिसकी वजह से बकरी का दूध शिशुओं के लाभकारी और स्वास्थ वर्धक होता है|
वयस्क व्यक्तियों में भी बाईफ़ीडो बैक्टीरियम से बने प्रोबायोटिक्स को Ulcerative Colitis नामक बीमारी में इस्तेमाल किया जाता है| इस बीमारी में आंतो में अलसर (ज़ख्म) हो जाते हैं और असहनीय पीड़ा होती है, ऐसे में बकरी का दूध बहुत लाभकारी सिद्ध होता है|
हाल ही में हुए अध्यनो में ये ज्ञात हुआ है की बकरी के दूध से बने फरमेनटीड उत्पाद (जैसे दही, छाज आदि) हानिकारक ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया जैसे येर्सिनिया, सलमोनेल्ला और इकोलाई को भी रोकता है.
एक अत्यंत संवेदनशील अध्यन में देखा गया है की मनुष्य में गले और मूत्र तंत्र के संक्रमण करने वाला बैक्टीरिया सिरेशिया मार्केसेन्स फरमेंट हुए बकरी के दूध में कम सक्रीय था बनिज्बत गाय के फरमेंट दूध के|
यह तथ्य मजबूती से इस बात की और संकेत करते हैं की पोष्टिकता की द्रिष्टि से बकरी के दूध को कम महत्त्व दिया गया है परन्तु विज्ञानं के प्रसार और निरंतर हो रही रिसर्च अब इस बात से पर्दा उठा रही है की हमें अब अपने खान पान में कुछ ज़रूरी बदलाव लाने पड़ेंगे जिससे हम दवाइयों के बजाये स्वस्थ रहने के लिए आहार का सहारा लें.
बकरी का दूध हर तरह से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सेहत के लिए उपयुक्त है और यदि आपको बकरी का दूध मिले तो उसे इश्वर की कृपा मानकर कम से कम अपने बच्चो के स्वास्थ को सुद्रिड और बलवान बनाये|
आइये एक और स्वास्थ के लिए हानिकारक अवस्था ओक्सीडेटिव स्ट्रेस के बारे में जाने| हमारे शरीर में निरंतर रसायनिक क्रियाएं चलती रहतीं हैं जिनसे उर्जा और विभिन्न पदार्थ बनते हैं जिससे जीवन का चक्र चलता है| परन्तु इस सब में कुछ ऐसे पदार्थ भी बनते हैं जो शरीर की कोशिकाओं के लिए हानिकारक होते हैं इन्हें फ्री रेडीकल्स कहतें हैं| इनमे उर्जा की कमी होती है इसलिए ये प्राकृत तौर पर हर एक पदार्थ से क्रिया करने को तैयार रहते हैं और इस क्रिया में कोशिकाओं के भीतर जीवनदायी सूक्ष्म पदार्थो को क्षति पहुंचाते हैं जैसे DNA, कोशिओकाओं की झिल्ली, एनज़ाइम्स आदि और इन्हें तोड़ कर बेकार कर देते हैं| प्रकृति ने इनसे बचने के लिए शरीर में कुछ ऐसे पदार्थ दिए हैं जो इन फ्री रेडीकल्स से क्रिया करके खुद समाप्त हो जाते हैं परन्तु इन फ्री रेडीकल्स को निष्क्रिय कर देते हैं| इन्हें एन्टीओक्सीडेन्ट्स कहते हैं, जैसे विटामिन A, E, C सेलेनियम, निआसिन, सुपर ऑक्साइड डिसम्युटेज़, ग्लूटाथिओन परओक्सिडेज़ आदि| परन्तु कई स्ट्रेस वाली स्थितियों में फ्री रेडीकल्स का उत्पादन अत्यधिक बढ़ जाता है और उनकी शरीर को नुकसान पहुँचाने की क्षमता भी अधिक हो जाती है ऐसे में ये फ्री रेडीकल्स पूरे शरीर की कोशिकाओं को तोड़ने लगते हैं और सबसे ज्यादा असर श्वेत रक्त कोशिकाओं पर होता है जो विभिन्न बीमारियों से लड़ती हैं| इनकी कमी से बिमारियों का प्रभाव बढ़ जाता है| इसी अवस्था को ओक्सीडेटिव स्ट्रेस कहते हैं| और इस कारण से निम्न बीमारियों के होने की पुष्टि विभिन्न रिसर्चओ में हो चुकी है| Asperger syndrome, ADHD, Cancer, Parkinson’s disease, Lafora disease, Alzheimer’s disease, Atherosclerosis, Heart failure, Myocardial infarction, Infection, Chronic fatigue syndrome, and Depression.
2003 में एक रिसर्च हुई जिसमे बकरी का फेर्मेंटड दूध और नियमित सदा बकरी का दूध कुछ लोगो को दिया गया| जिन लोगो ने बकरी का फेर्मेंटड दूध पिया उनमे LDL का ओक्सीडेशन काफी कम मिला और anti-atherogenic गुण देखने को मिले| जब इन लोगो के मूत्र की जाँच की गयी तो यह देखा गाय की उसमे आइसोप्रोसटेन की मात्रा बहुत कम थी जो की जो की कम
ओक्सीडेटिव स्ट्रेस का सबूत है|
बकरी का दूध व्यापक रूप से एंटी-ओक्सीडेशन प्रणाली को कार्यरत करता है और बढती उम्र और उससे जुडी बीमारियों जैसे शाइज़ोफर्निया पर रोक लगाता है और पुरुषो में प्रजनन शक्ति को बढाता है| इसके साथ साथ बकरी का दूध शरीर में कोलेस्ट्रोल के मेटाबोलिज़म को नियंत्रित करके खून में कोलेस्ट्रोल को कम करता है जिससे शरीर का वज़न नहीं बढ़ता और डियाबेटिज़ को रोकता है|
खून में मौजूद होमोसिसटीन की मात्रा पर नियंत्रण रहता है| खून में अधिक होमोसिसटीन रक्त शिराओं में जलन करने लगता है जिससे ज़ख्म हो जाते हैं और खून के थक्के जमने लगते हैं जिससे हार्ट अटैक के चांस काफी बढ़ जाते हैं| बकरी का दूध होमोसिसटीन को लाभकारी मेथियोनिन में बदल देता है इसलिए बकरी के दूध के सेवन से शरीर की शिराओं में खून के थक्के जमने की आशंका कम हो जाती है| बकरी का दूध ज़ींक खून मनी ज़ींक अवशोषित होने की क्षमता को बढ़ता है|
बकरी के दूध का फैट पेट में तेज़ी से पच जाता है जिससे वो लिपिड पर ओक्सीडेशन के लिए नहीं बचता और फ्री रेडीकल्स नहीं बन पाते| इसका सबूत बकरी का दूध पीने वालो के खून में TBARS की मात्रा बहुत कम होती है| TBARS शरीर में लिपिड पर ओक्सीडेशन का सूचक होता है|
बकरी के दूध का सेवन करने वाले व्यक्तियों में DNA की स्थिरता का आंकलन करके ज्ञात हुआ की यह DNA को स्थिरता प्रदान करने में एक सकारात्मक भूमिका निभाता है| यहाँ तक की आईरन ओवरलोडिंग के दौरान बकरी का दूध मैगनिशियम और ज़ींक के अवशोषण को कम नहीं होने देता| DNA निरंतर टूटता फूटता रहता है जिससे अनुवांशिक विलय (म्यूटेशन) का खतरा बना रहता है, DNA में इस टूट फूट की कुछ एनज़ाइम्स लगातार मर्रमत करते रहते हैं|
इन एनज़ाइम्स को सक्रीय करने और काम करने में मैगनिशियम की आवश्यकता होती है नहीं तो एनज़ाइम्स काम नहीं कर पाते| दूसरे बकरी के दूध के फैट की उच्च गुणवत्ता भी DNA की स्थिरता पर अनुकूल प्रभाव डालती है|
बकरी के दूध में मौजूद कार्नीटीन माईटोकोनड्रीया में फैट के प्रवेश को बढ़ा देता है जिससे फैट का माईटोकोनड्रीया में उर्जा के दहन बढ़ जाता है जिससे लिपिड पर ओक्सीडेशन के लिए लिपिड बचता ही नहीं और फ्री रेडीकल्स भी कम बनते हैं| यहाँ ये देखने की ज़रूरत है की बकरी का दूध न सिर्फ एंटी ओक्सीडेंट की तरह काम करता है बल्कि वज़न कम करने में भी सहायता करता है|
पेट की समस्याओं में बकरी के दूध के लाभ
पेट की अत्यंत जटिल और चिंताजनक स्थिति होती है इन्फ्लामेटोरी बोवेल डिजीज (inflammatory bowel disease), यह बीमारी रोग प्रतिरोधक तंत्र बिगड़ने और बार बार होने वाले इन्फेक्शन से होती है| यह दो बीमारियों का जोड़ होता हैं पहली अल्सरेटिव कोलाईटीस (ulcerative colitis) दूसरी क्रोहन डिजीज (Crohn Disease) इनमे आंतो में बार बार इन्फ्लामेशन होता है और छोटे छोटे कारक भी इसे उत्तेजित कर देते हैं| इससे मरीज़ ठीक से कुछ खा नहीं पाता और अक्सर पेट में दर्द की शिकायत रहती है| बकरी के दूध में मिलने वाले विशेष ओलिगोसेकराईडस मुख्य रूप से इन्फ्लामेशन को कम करते हैं, वज़न गिरना रुक जाता है, आंतो के ज़ख्म भरने लगते हैं, आंतो को एक आराम मिलता है और दस्त और खून आना बंद हो जाता है|
बकरी का दूध और एलर्जी में लाभ
सबसे आम एंटीजन जो हमारे खाने में मिलते हैं वो प्रोटीन होते हैं| दूध में भी प्रोटीन होते हैं जिसकी वजह से आम गाय का दूध कभी कभी (2 से 6% लोगो में) एलर्जी कर देता है| यह एलर्जी गाय के दूध में बहुत अधिक देखने को मिलती है परन्तु बकरी के दूध में एलर्जी करने वाले पदार्थ न के बराबर होते हैं| इसलिए गाय के दूध के मुकाबले में बकरी का दूध अधिक समय से पेट के दर्द की शिकायत में, दमे की बीमारी में और एक्जिमा में अच्छा काम करता है| बकरी का दूध गाय के दूध से होने वाली अधिकतर एलर्जी का इलाज कर देता है |
लेक्टोज़ इनटोलरेन्स – लेक्टोज़ दूध में मिलने वाला एक कार्बोहायड्रेट हैं जिसे पचाने वाला एन्ज़ायिम लेक्टेज़ नहीं होता जिसकी वजह से आम गाय या भैंस के दूध का लेक्टोज़ बड़ी आंत में चला जाता हैं जहाँ मौजूद बैक्टीरिया इसे तोड़ कर कुछ फैटी एसिड और गैसेस जैसे हाइड्रोजन और कार्बन डाई ऑक्साइड बना देते हैं जिससे पेट में गैस हो जाती है और असहनीय दर्द होता है|
बकरी के दूध से लेक्टोज़ इनटोलरेन्स वाले मरीजों को कोई हानि नहीं होती और सभी आयु के लोग इसे पी सकते हैं| इसका कारण यह है की बकरी के दूध का केसिन प्रोटीन (बीटा केसिन β-casein) गाय के केसिन (αs1) से भिन्न होता है और पेट में जल्दी से पच जाता है जिस वजह से लेक्टोज़ समेत पचा हुआ दूध बड़ी आंत से शीघ्र निकल जाता है और लेक्टोज़ इनटोलरेन्स के लक्षण नहीं दिखते|
बकरी के दूध का कैंसर में उपयोग
बकरी के दूध में मौजूद CLA के अन्दर कैंसर रोधी गुण होते हैं और अध्यनो में CLA ने स्तन कैंसर और कोलोन कैंसर के प्रति प्रतिरोधक गतिविधि दिखाई दी| यहाँ यह कहना मुश्किल है की यह किस वजह से हुआ परन्तु इकोसेंओइड सिग्नलिंग तंत्र में गड़बड़ी या एंटी ओक्सीडेटिव गुण CLA की कार्य का समर्थन करते हैं|
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बकरी के दूध का योगदान
रोग प्रतिरोधक तंत्र बहुत संवेदनशील और क्लोज़ नेटवर्क के रूप में काम करता है| इसमें विभिन्न कोशिकाएं काम करती हैं जिनमे से कुछ डायरेक्टली माइक्रोब्स को मारती हैं कुछ इनडायरेक्टली इम्मुनोग्लोब्युलिन नामक प्रोटीन से काम करते हैं (इन्हें एंटीबॉडी भी कहते हैं)| यह कोशिकाएं प्राकृतिक रूप से फ्री रेडिकल्स बनाने के लिए कर्मबध रहती हैं जिससे ये रोग पैदा करने वाले मिक्रोब्स को मारती हैं| इस कारण से इम्यून सिस्टम अत्यधिक ओक्सीडेटिव स्ट्रेस में रहता है| बकरी का दूध अपने एंटी इन्फ्लामेंट्री और एंटी ओक्सीडेटिव गुणों से रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है| हल में किये गए शोधो से पता चला है की बकरी का दूध मनुष्य की रक्त कोशिकाओं और इंडोथीलिअल कोशिकाओं में नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) और रोग प्रतिरोधी साइटोकाईन बनाने में सफल रहा है| NO रक्त शिराओ को लचीलापन प्रदान करता है और इन्हें ढीला करता है जिससे ब्लड प्रेशर के मरीजों को बहुत फायदा होता है| बकरी के दूध के ह्रदय रक्षात्मक गुण इसे लोकप्रिय बनाने के लिए काफी हैं|
अंतिम शब्द
बकरी के दूध को पिछले वर्षो में काफी अनदेखा किया गया है इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे सिमित उपलब्धता, जायके या स्वाद को लेकर भ्रम, बकरी उत्पादन और दूध को बढ़ाने के प्रयासों में कमी|
परन्तु अब निरंतर हो रहे वैज्ञानिक अध्यनो में बकरी के दूध में छिपे पोष्टिक गुण सामने आ रहे हैं और इसकी न्युट्रासिटीकल वैल्यू का भी लोगो को पता चल रहा है| यह दूध खासतौर से बच्चो के दिमागी विकास के लिए लाभदायक है, साथ ही साथ कमज़ोर हाजमे वाले व्यक्तियों और वृद्ध व्यक्तयो के लिए भी एक सम्पूर्ण आहार का काम करता है|
दिल के मरीजों के लिए बकरी के दूध में मौजूद लाभकारी पोषक तत्वों की पुष्टि वैज्ञानिक तौर पर हो चुकी है| रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है इसीलिए यह डेंगू और अन्य वायरल बीमारियों में लाभकारी सिस्ध होता है|
अब मेट्रोसिटीज़ में बकरी के दूध के बार्स भी खुलने लगे हैं, दिल्ली, चंडीगढ़ हैदराबाद आदि स्थानों पर लोग बकरी के दूध को अच्छे दाम देकर प्राप्त कर रहे हैं| यह चलन बकरी के दूध को डेरी इंडस्ट्री में एक अलग पहचान दिलाने में सहायक सिद्ध हो रहा है|
यह लेख काफी रिसर्च और लिटरेचर पढने के बाद लिखा गया है इसमें मौजूद सब जानकारियों के रेफरेन्सेस मौजूद हैं|